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[ मर्वा प्रकरण
विधवाओंकी जिंदगी भरके लिके पाबन्द करेगा। ज्यादा नहीं सब विधवाओंके मरनेके बाद जब जायदाद उनके पतिके वारिसको पहुंचेगी उस वक्त उस वारिसको विधवाओंका किया हुआ इन्तकाल पाबन्द नहीं करेगा, देखो-हरीनरायन बनाम बिताई 31 Bom. 560; दुर्गादत्त बनाम गीता (1911 ) 39 All. 443, 449,
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उत्तराधिकार
जब दो या दो से अधिक विधवाएं पति की जायदादमें वारिसाना क़ब्ज़ा रखती हों और हर एक विधवा अपने अपने अलहदा हिस्सेकी मालकिन हो चाहे वह अदालतसे या आपसके बटवारेसे अलहदा क़ब्ज़ा जायदादपर रखती हो। उनमें से किसी बिधवाने क़ानूनी ज़रूरत के लिये अपनी वह जायदाद जिसपर कि वह अलहदा क़ाबिज़ है बिना मंजूरी सब विधवाओंके इन्तक़ाल करदे तो ऐसी सूरतमें वह इन्तक़ाल सिर्फ उसकी जिन्दगी भरके लिये उसकी अलहदाकी जायदादको पाबन्द करेगा ज्यादा नहीं । और जब वह विधवा मर Sarita उसका हिस्सा दूसरी विधवाको चला जायगा और इन्तक़ाल रद्द समझा जायगा, देखो - वदाली बनाम कोटीपाली ( 1902 ) 26 Mad. 334; (1906) 30Mad. 3.
( ११ ) विधवाका रोटी कपड़ा पानेका हक़ -- जब विधवा अपने पतिकी छोड़ी हुई जायदादकी वारिस नहीं होती अर्थात् जब विधवाको पतिकी जायदाद नहीं मिलती तो फिर विधवाका सिर्फ रोटी, कपड़े पानेका हक़ बाक़ी रह जाता है । रोटी, कपड़ेके हक़को भरण-पोषण, गुज़ारा, या नाननफ़क़ा, कहते हैं । विधवाके गुज़ारेका इक़, पतिकी अलहदा जायदादमें, और उस जायदादमें भी जिस जायदादका उसका पति मरते समय मुश्तरकन् हिस्सेदार था रहता है। मतलब यह है कि ऊपर कही हुई दोनों किस्मोंकी जायदादपर विधवाका हक़ गुज़ारा पाने का रहता है। नजीरें देखो-
१ - पतिकी छोड़ी हुई अलहदा जायदादपर विधवाका हक़ गुज़ारा पानेका है । यशवन्तराव बनाम काशीबाई 12 Bom. 26, 28.
२ - उस जायदादपर जिस जायदादका उसका पति मरते समय मुश्तरकन हिस्सेदार था; देवीप्रसाद बनाम गुणवन्ली 22 Cal. 410; ज्ञानती बनाम अलामेलू 27 Mad. 45; बेचा बनाम मदीना 23 All 86; आधीबाई बनाम कृष्णदास 11 Bom, 199.
चाहे विधवा बिना किसी उचित सबके अपने पतिकी जिन्दगीमें उससे अलहदा रही हो और जब उसका पति मरा हो तबभी पति से अलहदा रहती हो तो भी विधवा अपने गुज़ारा पाने की मुश्तहक़ है । यह गुज़ारा उसके पति की जायदाद मेंसे मिलेगा जो उसके पतिने छोड़ी हो चाहे वह लद्दा हो या मुश्तरका हो। देखो - 31 Mad. 338.