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एफा ६०४]
सपिण्डोंमें वरासत मिलनेका काम
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हासिल करनेके लिये बांटी जा सकती है मगर किसी सूरतमें मीसा बटवारा नहीं हो सकता जिससे सरवाइवरशिपका हक टूट जाय।.
जहांपर कि एक हिन्दू एकही विधवा छोड़कर मरजाय तो वह विधवा अपने उस हकको जो उसे अपनी जिन्दगी भरके लिये पतिकी छोड़ी हुई जायदादमें मिला है रेहन कर सकती है और बेच सकती है। लेकिन विधवा जायदादको कहीं रेहन नहीं कर सकती और न बेच सकती है सिवाय उन चन्द सूरतोंके जो कानूनमें बताई गई हैं देखो दफा ७०६ । ध्यान रहे कि विधवा अपने हकको रेहन या बय तो कर सकती है मगर जायदादको नहीं इसे साफ तौरपर यों समझिये कि विधवा जायदादके मुनाफेको सिर्फ अपनी जिन्दगी भरके लिये रेहन और बय कर सकती है। और अगर कानूनी सूरतोंके सिवाय जायदादको रेहन या बय करदे तो वह रेहन या बय उस वारिसको पाबन्द नहीं करेगा जो विधवाके मरनेके बाद उसके पतिका वारिस होगा। ऐसा मानों कि एक आदमी एक विधवा और एक भाई छोड़कर मर गया विधवा जायदादकी वारिस हुई और उसने जायदादको चिना कानूनी ज़रूरतके किसीके पास रेहन या बयं कर दिया तो वह रेहन या बय सिर्फ विधवाकी ज़िन्दगी भरके लिये पाबन्द करेगा मगर अब विधवा मर जायगी और जायबाद उसके पतिके भाईको वरासतन पहुंचेगी तो रेहन या बय उसके भाईको पाबन्द नहीं करेगा।
(८) सरवाइवरशिपका हक नहीं मारा जायगा-जहां कोई हिन्दू दो या दोसे ज्यादा विधवाएं छोड़ कर मर जाय तो सब विधवाओंका पतिकी जायदादपर मुश्तरका और सरवाइवरशिप (दफा ५५८ ) के हकके साथ कब्ज़ा होता है। उन विधवाओंमेंसे हर एक अपना मुश्तरका हिस्सा अपनी ज़िन्दगी भरके लिये रेहन कर सकती है और बेंच सकती है। इसी तरह हर एक विधवा अपनी जायदादकी आमदनी जो उसे उसके अलहदा हिस्सेसे मिलती है चाहे वह हिस्सा अदालत की डिकरी से अथवा आपसमें अलहदा कर लिया गया हो रेहन कर सकती है और बेच सकती है। लेकिन ऐसा इन्तकाल, चाहे वह रेहन या वय या किसी अन्य तरहसे भी किया गया हो उस विधवाकी ज़िन्दगी तक जायज़ रहेगा जिसने कि उसे किया हो । उस विधवाके मर जाने के बाद उसका किया हुश्रा इस्तचल रह हो जायागा और उसका हिस्सा दुसरी विधवाको मिल जायगा । अर्थात् विधवा जायदादका प्रेसा इन्तकाल नहीं कर सकती जो दूसरी विधवाके सरवाइवरशिपके हकमें बाधा पहुंचाये।
(३) विधवाका इन्तकाल कब जायज़ होगा-जहांपर दोसे ज्यादा विधवाएं पतिकी जायदादपर काबिज़ हों और उनमेंसे एक विधवा सर विधवाओंकी मंजूरीसे जायदादका इन्तकाल करदे तो वह इन्तकाल उन सब