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________________ दफा ६०४] सपिण्डोंमें वरासत मिलने का क्रम दफा ६०४ विधवाकी वरासत (१) कब हक होता है ? पुत्र, पौत्र, प्रपौत्रके न होनेपर मृत पुरुषकी जायदाद उसकी विधवा स्त्रीको मिलती है। बृहस्पतिने कहा है कि आम्नाये स्मृति तन्त्रेच लोकाचारे च सूरभिः .. शरीरार्द्धस्मृता जाया पुण्या पुण्यफले समा। यस्य नोपरताभार्या देहार्द्ध तस्य जीवति जीवत्यर्द्ध शरीरेऽथ कथमन्यः समाप्नुयात् । . सकुल्यौर्विद्यमानस्तु पितृमातृसनाभिभिः असुतस्य प्रमीतस्य पत्नीतद्भागहारिणी । बृहस्पति. बृहस्पति कहते हैं कि-यह बात वेद, स्मृति, तंत्र और लोकाचारमें मी मानी जाती है कि पुण्य और पापके फलकी स्त्री बराबरकी हिस्सेदार है, क्योंकि वह पुरुषका आधा शरीर है। जिस मृत पुरुषकी विधवा स्त्री जीती हो तो मानों उस पुरुषका प्राधा अङ्ग जीता है, और जब भाषा अङ्ग जीता है तो उसे छोड़कर मृत पुरुषकी जायदाद कैसे दूसरेको दी जा सकती है। नतीजा यह हुआ कि सकुल्योंके तथा माता पिता और भाइयोंके मौजूद होने पर भी अपुत्र पुरुषकी जायदाद उसकी विधवा लेगी। 'अपुत्र मृत पुरुष से यह मतलब है कि जिसके पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र न हों और ऐसी हालतमें बह मरा हो। ____ याज्ञवल्क्यने भी विधवाको पुत्र, पौत्र, और प्रपौत्रके पश्चात् मृत पुरुष * धनका वारिस माना है पत्नी दुहितरश्चैव पितरौ भ्रातरस्तथा, तत्सुता गोत्रजा बन्धु शिष्यः सब्रह्मचारिणः ॥ अनेन पूर्व पूर्वस्याभावे पर परस्याधिकारं वदन् सर्वेभ्यः पूर्व पल्या एव पनाधिकार मभिधत्ते विष्णुने भी यही बात मानी है; देखो(अपुत्रस्य धनं पत्न्याभिगामि)
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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