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उत्तराधिकार
[नयां प्रकरण
جی ام سی جی جی، میو میو میو نیو به بهره می به نیهانی دوم و یه هنیه به ره وه بهم
अपुत्रका अर्थात् जिसके पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र न हों उसके धनको पहिले उसकी विधवा लेती है।
बिल्कुल इसी प्रकार कानूनमें माना गया है। नीचे देखो
(२) विधवाकी मिलकियत-लड़के, पोते, परपोतेके न होनेपर पति की छोड़ी हुई जायदाद विधवाको महदूद हकोंके साथ मिलती है। विधवा के मरनेपर वह जायदाद विधवाके वारिसोंको नहीं मिलेगी, बल्कि उसके पतिके वारिसोंको मिलेगी, इस किताबकी दफा ५६३ देखो-भगवानदीन बनाम मैनाबाई 11 M. I.A. 487.
विधवाको जो जायदाद पतिसे मिलेगी उस जायदादमें वह सिर्फ उसके मुनाकेके पानेकी हकदार है, चन्द कानूनी सूरतोंके सिवाय विधवाको जाय. दादके इन्तकाल करने का कोई अधिकार नहीं है। मगर उसे यह अधिकार है कि वह अगर चाहे तो सिर्फ अपनी जिन्दगी भरके लिये जायदादमें जो उसे हक है रेहन, या बय करदे, यानी गिरवी रखदे, या बेंच डाले । जायदादके मुनाफ पर विधवाको पूरा अधिकार है। उसे अपनी मरज़ीके अनुसार वह काममें ला सकती है। विधवाके उत्तराधिकार सम्बन्धमें कुछ नजीरें देखिये 9M. I. A. 643-611; 2 W. R. P.C. 31-39; 5 I. A. 61, 1 Mad, 31252C. L.R.81; 5I.A. 14994 Cal.1903 3 C. L. R. 31-401 13M.1. A. 1133 3 B.L. R.P.C.411 12 W. R. P. C.403 13
M. I. A. 497; 6 B.L. R. 2027 14 W. R. P. C. 38, 3 Mad. H.C. '289; 2 M. I. A. 331; 5 W.R. P.0 131; 3 M. W. P. 74; जैनियों के लिये देखो-6 N. W. P. 382. S. C; 5 I. A. 87; 1 All. 688, 1925 A. I. R.97 Oudh.
-हिन्दू स्त्रीके मुसलमान हो जानेपर आया उत्तराधिकारका अधिकार 'चला जाता है ? यदि कोई हिन्दू स्त्री विधवा हो जानेके बाद मुसलमान हो जाय, तो सिवाय उसके हिन्दू पतिके, उसके वरासतके अधिकारों में कोई असर नहीं पड़ता-घनश्यामदास बनाम सरस्वती 21 L. W. 415; (1925) M. W. N. 285; 87 I. C. 62', A. I. R. 1925 Mad. 861. . जब पतिकी मृत्युके पश्चात् कोई हिन्दू विधवा, किसी मुश्तरका खानदानकी जायदादपर काबिज पाई जाती है, तो उसका कब्ज़ा आमतौरपर उस की परवरिशके सम्बन्धमें माना जाता है । उसका कब्ज़ा उस जायदादपर मुखालिफ़ाना नहीं होता-यशवन्त बनाम दौलत 89 I. C. 663.
उस विधवाका अधिकार, जो जायदादपर ताहयात अधिकार रखती है बमुकाबिले उस विधवाके अधिकारके जो परवरिशकी गरज़से जायदाद प्राप्त करती है, अधिक होता है-गोपी कोपरी बनाम मु० राजरूप कोयर A. I. R. 1925 All. 190.
4. ०61.