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________________ - उत्तराधिकार - [नवां प्रकरण wwwwwwwwwwwwwww पारिसको मिलेगी, चरन दासको नहीं मिलेगी, क्योंकि वह उसका वारिस नहीं है । और अगर ऐसा मानों कि बटवारा नहीं हुआ तो कालीदास औरस पुत्रकी जायदाद सरवाइवरशिपके हक़के अनुसार चरनदासको मिलेगी। यह ध्यान रखना कि चरनदास अनौरस पुत्र सिर्फ उतनी जायदाद पायेगा जो बापसे कालीदासको मिली होगी। और जो जायदाद कालिदासकी खुद कमाई है या और कोई दूसरी है अह कालिदासके वारिसको मिलेगी अनौरस पुत्र चरनदास को हरगिज़ नहीं मिलेगी क्योंकि वह उसका वारिस नहीं है। (१) द्विजोंमें अनौरस पुत्रका कोई हल नहीं है । दासी पुत्र-यह बात हम पहिले बता चुके हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्योंमें अनौरस पुत्रका बापकी जायदादहै कोई अधिकार किसी तरह का नहीं है वह बापका उत्तराधिकारी नहीं है और न वह बटवारा करासकता है। शूद्रोंके अनौरस पुत्रके बारेमें हिन्दूधर्म शास्त्रोंमें यह मानागया है कि अगर वह 'दासीपुत्र' हो यानी 'दासी' का लड़का हो तो वरासत और बटवारेमें कुछ अधिकार रखता है। कलकत्ता हाईकोर्टने 'दासी' शब्दका अर्थ यह किया है जो 'औरत खरीदी गयी हो' और चूंकि सन् १८४३ ई० में दासीका होना बन्द कर दिया गया है इसलिये अब दासी नहीं होती इस सवबसे कोई भी आदमी दासी पुत्र नहीं हो सकता । नतीजा यह निकला कि चाहे मिताक्षरालॉया दायभागलॉका केस हो कलकत्ता हाईकोर्टके अनुसार सन् १८४३ ई० से जब कि दासी होना बन्द कर दिया गया है तबसे कोई भी 'अनौरस पुत्र' दासी पुत्र नहीं कहा जा सकता इससे उसे वरासतमें और बटवारेमें किसी हिस्सेके लेनेका भी हक़ नहीं है सिर्फ वह पापकी जायदादमें रोटी कपड़ा पानेका अधिकार है। देखो--रामसरन बनाम देकचन्द ( 1900) 28 Cal. 194; नरायन बनाम रखल 1 Cal. 1; क्रिपाल बनाम सुकरमनी 19 Cal. 91. बम्बई, मदरास, और इलाहाबादकी हाईकोर्टने यह माना है कि यद्यपि 'दासी' शब्दका अर्थ खरीदी गयी औरतसे है मगर इस अर्थमें उस औरतका भी समावेश हो सकता है कि जो किसी आदमीके पास सिर्फ उसीके लिये बराबर रही हो, तो ऐही औरतका खड़का इन कोटौंके अनुसार वरासत और बटवारामें कुछ हक रखता है जैसा कि ऊपर बताया गया है। (१०) अनौरस पुत्र बटवारा नहीं करा सकता--अनौरस पुत्र अपने बापसे मौरूसी जायदादका बटवारा नहीं करा सकता क्योंकि उसे पैदाइससे हक्क नहीं पैदा होता । बापको अधिकार है कि अगर वह चाहे तो उसे प्राधा हिस्सा है। मगर आधेसे ज्यादा बापका अधिकार भी देनेका नहीं है। देखो दफा ४०३, ५२२.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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