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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
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दफा ५९८ वरासत मिलनेका क्रम मिताक्षराके अनुसार
उत्तराधिकार मिलने के क्रमको समझनेसे पहिले महर्षि याज्ञवल्क्य के नीचे लिखे श्लोकको और मिताक्षराकार विज्ञानेश्वरके मतको अच्छी तरहसे ध्यान में रख लीजिये । महर्षिने बड़ी उत्तमता और संक्षेपसे उत्तराधिकारके जटिल प्रश्नको वर्णन किया है । याज्ञवल्क्य कहते हैं -व्य०-१३५-१३६.
पत्नी दुहितरश्चैव पितरौ भातरस्तथा तत्सुता गोत्रजा बन्धुः शिष्यःस ब्रह्मचारिणः । एषामऽभावे पूर्वस्य धनभा गुत्तरोत्तरः स्वातस्य ह्यपुत्रस्य सर्ववर्णेष्वयंविधिः ॥
मरे हुये अपुत्र ( जिसके पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र न हों ) पुरुषका धन नीचे के क्रमानुसार पहिलेके न होनेपर दूसरेको मिलता है। क्रम यह है विधवा, लड़की, नेवासा, माता, पिता, भाई, भतीजा, गोत्रज, बन्धु, शिष्य, और ब्रह्मचारी।
मिताक्षराका यह नियम है कि जब एकही दर्जेके दो किस्मके वारिस हों तो जायदाद सबसे पहिले सहोदर ( सगे) को मिलेगी और उसके न होने पर मिन्नोदर (सौतेले) को मिलेगी। भाई, भतीजे आदिमें यह नियम सर्वत्र लागू रहता है।
मिताक्षरामें बताये हुये इस क्रमको बनारस, मिथिला, और मदरास स्कूलने पूरा पूरा स्वीकार किया है ( देखो दफा ५६६); मगर भतीजेके लड़के के बारेमें भेद है, इन स्कूलोंने भतीजेके पुत्रका दर्जा दादी और दादासे पहिले माना है और हालमें एक फैसला प्रिवी कौन्सिलसे ऐसा होगया है कि जिसमें भतीजेके पुत्रका दर्जा दादीसे पहिले स्वीकार किया गया, देखो-बुद्धासिंह बनाम ललतूसिंह ( 1912 ) 34 All. 663. इस नज़ीरका विवरण देखो दफा ६२५ । इस नजीरमें बहुत छान बीन कीगयी है और यह भी तय कर दिया गया है कि हर एक पूर्वजकी लाइनमें तीन दर्जे तक जायदाद मिलेगी, यानी पूर्वजके लड़के, पोते, परपोते तक । नक्शा देखो-दफा ६२४.