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दफा ५५५-५६७]
मर्दोका उत्तराधिकार
(२) छः पुश्त ऊपरकी बापकी शाखामें मर्द यानी, साप, दादा, परदादा एवं ऊपर छः पुश्त तक और उनमें से पहिले वाले तीन पुश्त तक कीस्त्रिया ( +इस निशान वाली) और उनके ऊपरकी तीन स्त्रियां बहुत करके मानी जाती हैं।
(३) ऊपरकी शाखा वाले बाप आदिकोंकी ६ पुश्तोंके हर एकमें . छः छः पुश्तों तक मर्द (४) विधवा स्त्री, लड़की, लड़कीका लड़का
सपिण्डोंका जोड़ ५७ दफा ५९६ समानोदकोंकी संख्या निश्चित नहीं है
जैसाकि ऊपर बताया गया है, सपिंडकी रिश्तेदारी मृत पुरुषसे उसको मिलाकर सात पीढ़ी तक फैलती है और मृत पुरुषको मिलाकर उसके आठवें दर्जेसे लेकर चौदहवे दर्जे तक और हर एक उस शाखामें एकसे तेरह तक एवं सपिंडकी दोनों शाखाओंमें तेरह दर्जे तक समानोदक फैलता है इससे भी अधिक समानोदक माने जा सकते हैं अगर खूनसे सम्बन्ध रखने वाली रिश्तेदारी साफ तौरपर साबित करदी जाय (देखो इस किताबकी दफा ५८८, ५८६) नज़ीर देखो-देवकोरे बनाम अमृतराम 10 Bom. 372. कालिका. प्रसाद बनाम मथुराप्रसाद 30 All. 510; 36 I. A. 166. रामवरन बनाम कमलाप्रसाद (1910) 32 All. 594. दफा ५९७ बन्धुओंकी संख्या निश्चित नहीं है
पहिले बताया गया है कि बन्धु कौन रिश्तेदार होते हैं (देखो दफा ५६०); पहिले ऐसा ख्याल किया जाता था कि मिताक्षरामें जो है किस्म 'बन्धु' बताये गये हैं सिर्फ इतनेही होते थे। मगर अब उसका अर्थ ऐसा माना जाता है कि मिताक्षरामें जो ६ बन्धु बताये गये हैं वह बन्धुओं की संख्या को खतम नहीं कर देते यानी सिर्फ ६ ही बन्धु नहीं हैं . से ज्यादा भी होते हैं। यह ६ बन्धु मिताक्षरामें सिर्फ उदाहरणकी तरह बताये गये हैं कारण यह है कि अगर आप सिर्फ ६ ही बन्धु मानेगे तो यह बात बिल्कुल बुद्धिके विरुद्ध होगी कि मामाका लड़का बन्धु हो और उसका बाप यानी मामा बन्धु न हो। इसी तरहपर यह बातभी है कि मामा बन्धुहो और उसका बाप नानाबन्धु हो 'बन्धु' दो शाखामें होते हैं। ऊपरकी शाखामें और नीचेकी शाखामें। और ऊपरकी शाखावाले वन्धु जैसे नाना, नानाका बाप, इत्यादि और नीचेकी शाखा वाले बन्धु जैसे लड़की का लड़का, लड़की की लड़की का लड़का देखो दफा ६३८.