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मुश्तरका खान्दान
[छटवां प्रकरण
___ जबकि बेची जाने वाली जायदाद हाईकोर्टके 'ओरिजिनल जुरिस्डिक्शनमें' न हो तो खरीदारको चाहिये कि मेनेजरसे कहे कि दूसरी अदालत से जो मजाज़ मंजूरी देनेका रखती हो बेंचने की मंजूरी प्राप्त करे और अगर किसी सबबसे खरीदार अदालतकी मंजूरी मुनासिब न समझता हो तो उसे चाहिये कि बिक्रीकी ज़रूरतोंको अच्छी तरहसे और सब उपायोंसे ठीक जांच करले जो एक समझदारको योग्य रीतिसे करना चाहिये। दफा ४४४ बापके द्वारा मुश्तरका जायदादका इन्तकाल
मुश्तरका खान्दानकी जायदादके इन्तक़ाल करनेमें बापकी हैसियतसे बापको ऐसे खास अधिकार प्राप्त हैं जो किसी दूसरे कोपार्सनरको प्राप्त नहीं है वह अधिकार यह हैं. (१) बाप, इस किताबकी दफा ७६६, ४१८-२; में लिखी हुई हद तक पैतृक मनकूला जायदादको दान कर सकता है।
(२) बाप, पैतृक मनकूला और गैर मनकूला जायदादको अपने पुत्रों और पौत्रोंके हिस्से सहित अपने ज़ाती कर्जे के अदा करनेके लिये बेंच सकता है और रेहन कर सकता है बशर्तेकि वह क़र्जा जायज़ हो; देखो दफा ४४८.
(३) बाप, खान्दानके देवताके लिये पैतृक गैर मनकूला जायदादका बहुत थोड़ा सा भाग देवताके पूजन आदिके खर्चके लिये अलहदा कर सकता है देखो -रघुनाथ बनाम गोविंद 8 All. 76. यह निजका धर्मादा कहलाता है देखो दफा ८२३.
___ ऊपर कही हुई सूरतोंके सिवाय मुश्तरका खान्दानकी जायदादमें वाप के भी वही अधिकार हैं जो मेनेजरके होते हैं अर्थात् जब उसके पुत्र बालिग हों तो उनकी मरजी बिना या अगर नाबालिग हों तो जायज़ ज़रूरत बिना वह मुश्तरका खान्दानकी जायदादका इन्तकाल नहीं कर सकता; देखो-चिन्नै य्या बनाम पीरूमल 13 Mad. 51; 16 Mad. 84. बाला बनाम बालाजी 22 Bom. 825; 26 Bom. 163, 27 Mad. 162.
उस क़र्जके लिये जो किसी पहिलेके रेहननामेकी वजहसे हो,हिन्दू पिता संयुक्त खान्दानकी जायदादका इन्तकाल कर सकता है - चन्दूलाल बनाम मुकुन्दी 26 Punj. L. R. 120; 87 I. C. 40; A. I. R. 1925 Lah. 503.
पिताका कर्ज-खान्दानी जायदादकी जिम्मेदारी-किस क़दर है हरिहर प्रसाद बनाम महाबीर पांडे 27 0. C. 306; 1925 Oudh 91, . इसमें पाबन्दी नहीं मानी गयी-प्रभाव-आया पिताके हिस्सेपर जिम्मेदारी है ?-जुक्खू पण्डी बनाम माताप्रसाद 83 I. C. 1044; A.I. . 1925 Oudh. 94.