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दफा ४४२-४४३ |
मुश्तरका खान्दानकी जायदादका इन्तक़ाल नहीं कर सकता अगर करे तो दूसरे कोपार्सनर उसके पाबन्द नहीं होंगे और वह इन्तक़ाल भी नाजायज़ माना जायगा देखो - गुरुवय्या बनाम थिम्मा 10 Mad. 316 शिवप्रसाद बनाम साहेबलाल 20 Cal. 453-461; कृष्णा बनाम कृष्णसामी 23 Mad. 597, 600.
मुश्तरका जायदादका इन्तक़ाल
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दफा ४४३ नाबालिग होनेपर मुश्तरका जायदाद कैसे खरीदी जाय
ऊपर यह कहा जा चुका है कि जहांपर दूसरे नाबालिग कोपार्सनर हों, मेनेजर मुश्तरका खान्दानकी जायदादको न तो बेंच सकता है और न रेहन कर सकता है और न किसी तरहका इन्तक़ाल कर सकता है सिवाय उन सूरतोंके जब कि खान्दानी जायज़ ज़रूरतें हों देखो दफा ४३०, ४३१. अगर मुश्तरका खान्दानकी जायदादकी बिक्री बिना खान्दानी ज़रूरत के की गयी है तो उस बिक्रीको नाबालिग कोपार्सनर जब वह बालिग होंगे मंसूख करा देंगे इस तरहकी विक्रीमें खरीदार के लिये जोखिम है। अकसर ऐसा होता है कि जहांपर मुश्तरका खान्दानकी जायदादमें नालिगों का भी हिस्सा होता है तो खरीदार इस डरसे जायदादका पूरा दाम बाज़ारी भावसे देना नहीं चाहता जब तक कि मेनेजर अदालतसे नाबालिगोंकी तरफसे जायदाद
की मंजूरी न लेवे। ऐसे मामलेमें जहां नाबालिग कोपार्सनर हों मेनेजर को अदालतसे मंजूरी प्राप्त कर लेना ज़रूर चाहिये ।
अगर बेची जानेवाली जायदाद हाईकोर्टके 'ओगेजिनल जुरिस्डिक्शन' के अन्दर हो तो मेनेजरको चाहिये कि अदालतसे प्रार्थना करे कि वह उसे वली नाबालिगों का बनादे और उस जायदाद के बेंचे जानेकी मंजूरी दे जिसमें नाबालिगों का हिस्सा है देखो - 25 Bom. 353; 19Bom.96; 16Bom-634.
अदालतकी मंजूरी लेनेसे जायदादके खरीदारकी पूरी रक्षा होती है । अगर अदालतकी मंजूरी लेली गयी हो तो चाहे पोछेसे यह भी मालूम हो जाय कि कोई जायज़ ज़रूरत बिक्रीकी न थी तो भी वह बिक्री रद्द नहीं की जायगी मगर शर्त यह है कि खरीदारने कोई जालसाजी, या बेईमानी आदि न की हो; देखो - गङ्गाप्रसाद बनाम महारानी बीबी 11 Cal. 379; 383384; 12 I. A. 47, 50.
गार्जियन एन्ड वार्ड्स एक्ट सन १८६० ई० इस मामलेमे लागू नहीं होता क्योंकि इस क़ानून के अनुसार नाबालिराकी खुद अलहदा जायदाद के लिये ही वली. मुकर्रर हो सकता है लेकिन मुश्तरका जायदादमें नाबालिएको कोपार्सनरका हिस्सा उसकी अलहदा जायदाद नहीं है; 25 All. 407, 4163 30 I. A. 165, 170; 33 Mad. 139.