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[ छठवां प्रकरण
गवाहों या दूसरी तरह से साबित न की जाय; राजलक्ष्मी देवी बनाम गोकुलचन्द 3 Beng. L. R . ( P. C. )57; 13M. I. A. 209; लाला ब्रजलाल बनाम इन्दुकुंवर 16 Bom L. R. 352; ( P. C. ) इसी तरह से अगर बैनामामें ज़रूरत नहीं लिखी हो तो इस बातका सुबूत भी नहीं होगा कि दर असल ज़रूरत नहीं थी । यह बात दूसरी तरहसे और दूसरे गवाहोंसे साबित की जा सकती है, उमेशचन्द्र बनाम दिगंबर 3 W. R. 154.
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मुश्तरका खान्दान
क़ानूनी आवश्यकता- इस बातके निश्चय करनेके लिये, कि क्या खान्दानी फ़ायदा है और क्या खान्दानी फ़ायदा नहीं है कोई परिमित और निश्चित नियम नहीं है। किसी एक सूरतमें जो बात खान्दानी फ़ायदा समझी जा सकती है वह दूसरी सूरत में वैसीही नहीं रहती । इस प्रश्न का उत्तर कि अमुक क़र्ज जायदादके फ़ायदेकी मद्दमें आता है या नहीं, किसी विशेष सूरतकी तमाम परिस्थितियोंपर निर्भर है। 40 Mad. 709 full. उस सूरत में जबकि माताने बहैसियत वलीके अपने नाबालिग पुत्रके, खान्दानी जायदादको सीरकी ज़मीनपर काश्तकारी करनेके लिये जो कुछ दिनोंसे मौकूफ़ होगई थी, रेहन किया और क़र्ज लिया ।
तय हुआ कि परिस्थितिके लिहाज़ से कर्ज जायज़ और लाजिमी था । चन्द्रिकाप्रसाद बनाम रामसागर 120. L J. 565; 20. W. N. 425; 89 I. C. 567; A. I. R. 1925 Oudh 459.
जिसके हमें इन्तक़ाल किया गया है उसका कर्तव्य और जांच, देखो गिरधारीलाल बनाम किशनचन्द 85 1. C. 463; A. I. R. 1925 Lah.240.
जब जायदाद खान्दानके किसी सबसे बड़े मेम्बरके नाम हो - ऐसी दशामें जबकि किसी खान्दानके सब सदस्य एकमें ही रहते हों, यह तय हो चुका है कि यदि जायदाद सबसे बड़े सदस्यके नाम हो, तो उससे उसको खान्दानके बाक़ी सदस्योंको छोड़कर कोई खास अधिकार नहीं प्राप्त हो जाता और उस व्यक्तिका, जो इस प्रकारकी जायदादपर कोई मामला करता हो, यह कर्तव्य है कि इस बातकी जांच करले कि वह व्यक्ति जो जायदादका इन्तक़ाल करता है उसपर पूर्णाधिकार रखता है या नहीं, पाण्डचेरी कोकिल अम्बल बनाम सुन्दर अम्बल 86 1. C. 633; 21 L. W. 259; A. I. R. 1925 Mad. 902
केवल इस बिनापर कि कोई इन्तक़ाल किसी मुश्तरका खान्दानके मैनेजर द्वारा किया गया है; वह खान्दानके दूसरे मेम्बरोंपर लागू न होगा । उस फ़रीक़को, जिसके दक़में इन्तक़ाल किया गया है, चाहिये कि वह इस बातको साबित करे कि इन्तकाल खान्दानके फ़ायदे या स्वार्थके लिये किया गया है। सुबाशिनी दासी बनाम हब्बू घोश 89 I. C. 100.