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दफा ४३१]
अलहदा जायदाद
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है कि वह खानदानी ज़रूरतकी अच्छी तरह जांच करे जिस के लिये जायदाद बेची या रेहन रखी जाती है। खरीदार या जिसके पास रेहन रखा गया हो उसे यह साबित करना होगा कि वास्तव में खानदानी ज़रूरत थी और जायज़ थी, या यहकि उसने अच्छी तरहसे सब उपायों द्वारा उचित जांचकर ली थी कि ज़रूरत है और जायज़ ज़रूरत है।
(२) अगर खरीदार या जिसके पास रेहन रखा गया हो वह यह साबित कर दे कि खान्दानी ज़रूरत थी, और जायज़ ज़रूरत थी, तो चाहे मेनेजर के खराब इन्तज़ाम ही से वह ज़रूरत पैदा हुई हो तो भी जायदाद का इन्तकाल (रेहन या बिक्री) जायज़ माना जायगा। लेकिन अगर उस बद इन्तज़ामी में खरीदार या जिसके पास रेहन रखा गया हो वह भी शरीक रहा हो तो इन्तकाल नाजायज़ माना जायगा।
(३) अगर खरीदार या जिसके पास रेहन रखा गया हो जायज़ जरूरत साबित न कर सके मगर यह साबित करदे कि उसने पूरी तौर पर और सब तरह से उस ज़रूरत की जांच करलीथी औरजो बातें उसके सामने आयीं थी अगर वह.सच होतीं तो दर असल उसका यह समझना कि ज़रूरत जायज़ थी ज़रूर ठीक होता। उस सूरतमें जायदादका इन्तकाल जायज़ माना जायगा और अगर ऐसा साबित न हो सके तो इन्तकाल नाजायज़ माना जायगा देखो, सुरेन्द्र बनाम नन्दन 21 W. R. 196
(४) कोई भी खरीदार या जिसके पास रेहन रखा गया हो इस बात की जांच करने के लिये पाबन्द नहीं होगा कि जो रुपया उससे जायज़ ज़रूरत के लिये लिया गया है दरअसल उसीकाममें खर्च किया गया है या नहीं अगर खरीदार या जिसके पास रेहन रखा गया है खुद भी उस खानदानके इन्तज़ाम में शरीक हो तो उसे यह भी अदालत में साबित करना पडगा कि दरअसल वह रुपया उसी काम में खर्च किया गया है जिस काम के लिये वह लिया गया था, देखो-हनुमान प्रसाद बनाम मुसम्मात बबुई 6 M. I. A. 393; सुरेन्द्रो बनाम नन्दन 21. W. R. 196; बन्शीधर बनाम बिंदेश्वरी 10 M. I. A. 454, 471; दालीबाई बनाम गोपी बाई 26 Bom. 433; कन्हैय्यालाल बनाम मुन्नाबीबी 20 All. 1.35; मदन ठाकुर बनाम कन्तूलाल 14 Beng. L. R. 187, 199; 1 I. A. 321.
(५)मुश्तरका खानदान के व्यापार या कारोबार के मैनेजर ने जो कर्ज खानदान के फर्मके नाम से लिया हो उससे भी पूर्वोक्त कायदे लागू होंगे या नहीं होंगे इस विषय में मत मेद है। देखो - बैनामा में अगर खानदानी फर्मकी ज़रूरत लिखी हो तो ऐसा लिखा जाना इस बातका कतई सुबूत नहीं होगा कि दर असल ज़रूरत थी, जब तक कि वह ज़रूरत दूसरे