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दफा ४३१]
अलहदा जायदाद
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जब किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दा के पिता द्वारा किये हुये इन्तकाल पर, उसके पुत्र द्वारा एतराज़ किया जाय, तो यह महाजनका कर्तव्य है कि प्रथम अदालतमें कानूनी आवश्यकता प्रमाणित करे या कमसे कम ऐसा सुबूत पेश करे, जिसके द्वारा, एक चतुर मनुष्यकी समझमें कानूनी आवश्यकता प्रतीत हो सके। इस बिनापर कि हक़शिफ़ा होगया है और हक़शिफ़ा करने वालेके खिलाफ नालिश कीगई है, इस जिम्मेदारीपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चन्द्रिकासिंह बनाम भागवतसिंह 83 I. C. 54; A. I. R. 1924 All.170.
जांच करना-यह एक बात है कि महाजन उस सम्बन्धमें कानूनी आवश्यकताकी जांच करले, जिस सम्बन्धमें वह रुपया देता है, ऐसी सूरतमें जहांपर कि हर एक बात महाजनकी जानकारीमें हो, दूसरे प्रकारसे ध्यान दिया जाता है। ऐसी हालतोंमें, किसी सख़्त जांचकी आवश्यकता नहीं होती। सन्तानके पालनका खर्च कानूनी आवश्यकतामें आता है, किन्तु सन्तानकी शिक्षा के लिये इमारत बनवाने के लिये क़र्ज़ लेना कानूनी प्रावश्यकता नहीं है , जोगेशचन्द्र घोश बनाम चपला सुन्दरी वसु 90 I. C. 594.
हिन्दुला-इन्तकाल-यदि किसी महाजनने किसी मामलेके करनेके पहिलेही यह मान्य और कानूनी रीतिपर जांच करली है कि कानूनी प्रावश्यकता है, तो मामला करनेके बाद यदि कानूनी आवश्यकताका होना गलत भी पाया जाय, तो भी इन्तकाल नाजायज़ नहीं होता । शङ्करराव बनाम पाण्डु रंग A. J. R. 1927 Nag. 65.
जब कुछ रकम न साबित हो कि वह जायज़ ज़रूरतकी थी- जबकि किसी पूर्वजोंकी जायदादके बयनामेपर, किसी साझीदारने २० वर्षके बाद एतराज़ किया, और उस व्यक्तिने, जिसके हकमें बयनामा किया गया था यह प्रमाणित कर दिया कि बयनामेकी रक्कमका तीन चौथाई आवश्यकताके लिये थी किन्तु बय करने वालेके कुप्रबन्ध या उसके आचरणके सम्बन्धमें कुछ भी न कहा गया।
तय हुआ कि बयनामा बहाल रहे। जयसिंह बनाम दरबारीसिंह 6 Lah. 137; 7 Lah. L. J. 354; 89 I. C. 302, 26 Punj. L. R. 329%; A. I. R. 1925 Lah 396.
जबकि मेनेजरको कम सूदपर करज़ा मिल सकताहो और उसने ज्यादा सूदपर करज़ा लिया हो तो अदालत उसी शरहसे सूद दिलायेगी जिस कदर कि कम सूदपर मिल सकता था; देखो-हरिनाथ बनाम रणधीरसिंह 18 Cal. 311; 18 I. A. 1.
जबकि अदालतने गार्जियन् एन्ड वाईस ऐक्ट सन् १८६० ई० की दफा, २८ और २६ के अनुसार किसी नाबालिगकी अलहदा जायदादके वलीको उस