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दफा ४२३-४२४]
अलहदा जायदाद
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और अगर ऐसी जायदाद जो अलहदा हो वह मुश्तरका खान्दानमें रहनेपर भी वह आदमी उसे बेंच सकता है (6 W. R. 71) और इनाममें दे सकता है या वसीयतके ज़रिये जिसको जी चाहे देसकता है 20 All.267; 25All. 54; 24 Mad. 229; 10 Mad 251; 28 Mad 336; 10 W. R. 287, 20 W. R. 137; 1 All. 394; 12 M. I. A. 1, 39; 9 M. I. A. 96;8Bom. H. C. O. C. 196; और अगर वह बिना किसी वसीयतके मर जाय, तो वह जायदाद उसके वारिसोंको उत्तराधिकारमें मिलती है 9 M. I. A. 5 43, 613.
____ यह निश्चित तौरपर माना गया है कि जिस किसी बापके पास अलहदा जायदाद हो उस जायदादको बाप बिना पूछे अपनी औलादके जैसा उसके जी में आये कर सकता है यानी उस जायदादको बैंच सकता है (6 W. R. 71 ). दान कर सकता है या जिसको जी चाहे दे सकता है। लड़के पोते, परपोते अपनी पैदाइशसे उस जायदादमें कोई हक़ नहीं रखते। मगर बापके मरनेपर उसकी सब जायदाद जब लड़कोंके पास आवेगी तो उस वक्त वह जायदाद मौरूसी हो जायगी और मुश्तरका खानदानकी जायदादमें शामिल हो जायगी (1 All. 394 ). दफा ४२४ मुश्तरका कारवार
(अ) कोपार्सनरोंके कारोबारका वर्णन (१) हिन्दूलॉ में कारबार एक चीज़ है जो वरासतमें मिल सकता है। जब कोई हिन्दू मुश्तरका खान्दानका कोई कारबार छोड़कर मर जाता है तो वरासतमें आने वाली दूसरी जायदादोंकी तरहपर वह कारबार भी उसके वारिसोंको मिलता है। अगर वह आदमी कोई लड़का, पोता या परपोता छोड़कर मरा है तो वही सन्तान उस कारबारके पानेका हक़ रखती है उस सन्तानके हाथमें वह कारबार मश्तरका खान्दानका कारबार बन जाता है। और जिस फर्म या दुकानमें वह सन्तान शरीकहोते हैं, वह मश्तरकाखान्दान का फर्म या दकान कहलाती है। मुश्तरका खान्दानके कारबारमें जो शराकत लड़कों, पोतों या परपोतोंकी होती है वह शराकत कंट्राक्टसे बनाई हुयी (कम्पिनी या दुकान आदि) साधारण हिस्सेदारी ( Partnership ) नहीं है बल्कि वह मुश्तरका खान्दानकी भागीदारी है जो कानूनके असरसे स्वयं पैदा होती है। मुश्तरका खान्दानके फर्ममें जितने कोपार्सनर शरीक हैं उन सबोंके हक़ और कर्जे और ज़िम्मेदारियोंका विचार कंट्राक्ट एक्ट नम्बर । सन १८७२ ई० के अनुसारही नहीं हो सकता बल्कि इसके साथ साथ हिन्दूलॉ के. सिद्धान्तोंका भी झ्याल किया जायगा; देखो-रामलाल बनाम. लक्ष्मीचन्द 1