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मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
और जायदादका चिरकालसे पृथक पृथक उपयोग आदि इस सम्बन्धमें विचा. रणीय बाते हैं, किन्तु वे स्वयं अन्तिम परिणाम नहीं हैं, दरबारीलाल बनाम मु० पारबती बाई 91 I. C. 841; A. I. R. 1926 All. 256.
किसी एक सदस्यके खान्दानसे अलाहिदा हो जाने के बाद, खान्दानके दूसरे सदस्यों में से किसी एकके नाम जायदाद खरीदी गई।
तय हुआ कि यह मान लेनेपर भी, कि वह एक अलाहिदा प्राप्त की हुई जायदाद थी, इस प्रकारकी जायदाद एक साथमें रहने वाले बाकी खानदानके लिये अलाहिदा प्राप्तकी हुई नहीं समझी जा सकती और यह वाकिया कि दस्तावेज इन्तकाल किसी एकहीके नाम था इस बातका अन्तिम निर्णय नहीं हो सकता कि वह जायदाद उसके द्वारा अलाहिदा प्राप्त कीगई थी। नलिनाक्ष्य गोसल बनाम रघुनाथ घोसल 851. C. 662; A. I. R. 1925 Cal. 754.
खान्दानी जायदाद होनेकी सूरतमें उसके मुश्तरका होनेकी कल्पना। हरदत्तलाल बनाम धन्धीसिंह 84 I C. 1011; 28 0. C. 113; A. I. R. 1925 Oudh. 93.
पुत्र द्वारा प्राप्त की हुई जायदाद-यदि पिताके जीवनकालमें ही पुत्र कोई जायदाद अपने नामसे खरीदे और उसके स्वतन्त्र ज़रिये आमदनीके इस प्रकारके हों,कि जिसके द्वारा वह वैसी जायदाद खरीद कर सकता हो,तो यह समझा जायगा कि पुत्रने इसे खास अपने लिये खरीदा है और वह खानदानकी जायदाद न मानी जायगी। चुन्नीलाल खेभनी बनाम नीलमाधव वारिक 41 C. L. J. 374; 86 I. C. 734. A. I. R. 1925 Cal. 1034.
जब किसी खास तारीख तक, किसी परिवारका संयुक्त होना साबित होता हो, तो उसके बाद उसकी अलाहिदगीका सबूत उस फ़रीक द्वारा दिया जाना चाहिये, जिसका कि यह दावा है। देवनारायण पांडे बनाम अज्ञानराम पांडे A. I. R. 1927 Privy Council 52.
___यदि कोई जायदाद किसीकी पत्नीके नाम हो तो यह कल्पना नहीं हो सकती कि उसमें उसके पतिका अधिकार है जब तक यह साबित न हो कि उसके खरीदने के लिये रुपया पतिने ही दिया था। अाफीशियल एशायनी मद्रास बनाम नटेसा ग्रामनी A. I. R. 1927 Mad. 194. दफा ४२३ अलहदा जायदादपर अधिकार
कोई आदमी चाहे मुश्तरका खान्दानमें रहता हो मगर वह अपनी अलहदा जायदाद भी रख सकता है और ऐसी जायदाद उस आदमीके निज की होगी दूसरे किसी हिस्सेदारको उसमें पैदाइश से कोई हक़ नहीं होगा