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दफा ३८७-३८८]
मिताक्षरा लॉके अनुसार
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नाबालिगकी जायदादपर वली-जब किसी खानदानका कोई सदस्य मायालिरा हो; और उसकी जायदादपर कानूनके अनुसार वली मुकर्रर किया गया हो, उस सूरतमें यह कहना कि नाबालिग मुश्तरका खानदानका मेम्बर नहीं रहा, एक बिल्कुल नया सिद्धान्त है । हरीमोहन घोष बनाम सुरेन्द्रनाथ मित्र 41 C. L. J. 535; 88 I. C. 1025; A. I. R. 1925 Cal. 1153. दफा ३८८ मेम्बरोंके हक़
मुश्तरका खानदानकी जायदादमें मेम्बसेंके हक हर एक स्कूलके भनु. सार मिन्न भिन्न होते हैं--बंगाल स्कूल--अगर जायदाद बङ्गाल स्कूलके ताबे है,तो लड़कोंको बापकेजीते जी मौरूसी जायदादमें कुछभी हक्क नहीं है। बह जायदाद बापके पास पूरे अधिकारों सहित रहती है। बापको कुल जायदादके बेचनेका पूरा हक्क प्राप्त है-(दफा ४६२-४६४ ); बङ्गालमें अगर बाप, बिना किसी वसीयतके मर जाये, तो उसके लड़के जायदादमें हक उत्तराधि. कारके अनुसार प्राप्त करते हैं। परन्तु अगर जायदाद मिताक्षरा स्कूलके ताबे हो तो दूसरी शकल होगी; देखो दफा १६-१७.
किसी मेम्बरकी, किसी खास हिस्सेपर उसके अधिकारके घोषणाकी नालिश तब तक नहीं हो सकती, जब तक बटवारेका दावा न किया जाय । रामस्वरूप बनाम मु० कटौला 83 I. C. 2273 A. I. R. 1925 All. 211.
हिस्सेदारकी स्त्रीका भरण पोषण बतौर कर्जके माना जायगा-हिन्दूलॉके सच्चे अभिप्रायसे यह विदित होता है कि मुश्तरका खानदानके हिस्सेदारोंकी स्त्रियां भी मुश्तरका खानदानकी मेम्बर होती हैं चाहे उन्हें जायदादमें हिस्सा बटाने या बटवारा करानेका अधिकार न हो। यद्यपि हिन्दू लॉ, हिन्दू पतिपर, बिना किसी जायदादके हवालेके जो उसके अधिकारमें हो, जबकि मुश्तरका खानदानके कब्जे में जायदाद हो, अपनी स्त्रीकी परवरिशका भार रखता है, ताहम स्त्री द्वारा पतिके खिलाफकी हुई नालिश केवल ऐसी नालिश न समझी जानी चाहिये, जो कि व्यक्तिगत पतिके खिलाफ हो किन्तु वह सही रीतिपर समस्त खानदानके खिलाफ नालिश है।
यह भी तय हुआ कि इस बातके माननेके लिये कोई कारण नहीं है कि परवरिशकी बाकी जो किसी स्त्रीको अपने पतिसे पाना हो, क्यों हिन्दू लॉके अनुसार, जो केवल गैर अदा की हुई पाबन्दीका ध्यान रखता है और जिसके तथा कर्ज या हानिके मध्य कोई अन्तर नहीं है कर्ज न समझा जाय ? श्री राजा बोम्मा देवरा राजलक्ष्मी बनाम नागना नायडू 21 L. W. 461; 87 I. C. 5713 A. I. R. 1925 Mad. 757.