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[ छठवां प्रकरण
दफा ३८९ मिताक्षरा स्कूल के अनुसार मुश्तरका ख़ानदान मिताक्षरा स्कूल में हिन्दू खानदानका मतलब मूल पुरुष और उसकी frant प्रधान शाखाकी सन्तान से है और जब तककि वह आदमी मामूली हालत में रहता है मुश्तरका माना जाता है। मुश्तरका खानदानमें किसी आदमी या औरतके मर जानेसे कोई फरक नहीं पड़ता देखो - सुकनधा वानी मन्दर बनाम सुकनधा वानी मन्दर ( 1904 ) 28 Mad. 344, 345.
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मुश्तरका खान्दान
दफा ३९० मुश्तरका ख़ानदान बनानेसे नहीं बनता
मुतरका खानदान किसी आदमी या औरतके बनानेसे नहीं बनता वह जिस तरहसे क़ानूनमें माना गया है उसी तरहपर बनता है । यानी जितनी हदमें क़ानूनने मुश्तरका खानदानका फैलाव माना है उसी हृदमें वह रहेगा कोई उसे ज्यादा कमती नहीं कर सकता, मगर इसमें सिर्फ एक बात ऐसी है जिसके करने से गैर आदमी मुश्तरका खानदानके भीतर आ जाता है वह बात लड़का गोद लेना है। दत्तक लेने से दूसरे खानदानका लड़का भी मुश्तरका खानदानके भीतर आ जाता है ।
दफा ३९१ मुश्तरका खानदानकी शाखाएं
मुश्तरका खानदान एक मूल पुरुषसे शुरू होता है और उस मूल पुरुष के परिवारमें अनेक पुरुषोंकी औलाद होने से उनको मूल पुरुष मानकर छोटे अनेक मुश्तरका खानदान हो सकते हैं; देखो- -सदर सनाम मिस्ट्री बनाम मरासि महुलू मिस्ट्री 25 Mad. 149, 154. जब तक कि खानदानका बटवारा नहीं होता तब तक उसके दो या दो से ज्यादा मेम्बर चाहे वह एकही शाखा के मेम्बर हों अथवा वह उसी खानदानकी अनेक शाखाओंके मेम्बर हों, वे मुश्तरका खानदानसे अलहदा, और स्वाधीन क़ानूनके अनुसार नहीं मानेजायेंगे। लेकिन जहां पर वह एकही शाखा के सब मेम्बर हों तो वह उस बड़ेजमावके अन्दर अपना एक खास और अलहदा जमाव बना लेते हैं और इसके अनुसार उस शाखाके किसी मेम्बरकी खुद कमाई हुई जायदाद या किसी पूर्व पुरुषसे मिली हुई जायदाद, जो उस शाखाकी (सिर्फ उसी शाखाकी ) अलहदा जायदाद हो सकती है; बड़े जमावके अन्तर्गत दूसरी शाखाओं से अलहदा क़ब्ज़ा रखेंगेः देखो - 25 Mad. 149-155,
दफा ३९२ मुश्तरका खानदान कब टूट जाता है
मुश्तरका खानदानके सब मेम्बरोंके हक़का बटवारा हो जाने पर मुश्त रका खानदान टूट जाता है। जिन आदमियोंने मुश्तरका खानदान से बटवारा करा लेने के कारण मुश्तरका खानदान तोड़ दिया है उसमें नये मुश्तरक