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मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
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कि, पूर्ण पिण्डसपिण्ड चार डिगरीमें रहता है, इसी लिये 'कोपार्सनरी' की हिस्सेदारी चार डिगरीके अन्दरही मानी जाती है । कोपार्सनरीका विषय भागे विस्तारसे कहा गया है-देखो दफा ३६६ से ४०० यहांपर यह समझ लेना चाहिये कि मालिककी जायदादको जो जो लोग अपने हिन्दू शास्त्रीय सम्बन्धसे पिण्डदान करने के अधिकारी हैं वही अपनी पैदाइशसे मौरूसी जायदादमें हक़ प्राप्तकर लेते हैं। यानी लड़का, पोता, और परपोता । लड़के पोते, परपोतेके सिवाय और दूसरे रिश्तेदार अपनी पैदाइशसे मौरूसी, जायदादमें हक नहीं प्राप्त करते, जैसे परपोतेका लड़का । परपोतेके लड़केको उसके भगदादा ( वृद्ध प्रपितामह ) के जीतेजी जायदादमें कुछ हक़ नहीं है। मगर नगड़दादाके मरतेही वह भी अपने परदादाके साथः परपोतेकी हैसियत से जायदादमें अपनी पैदाइशसे हक्क प्राप्त कर लेता है। दफा ३८७ मुश्तरका ख़ानदानमें कौन आदमी होते हैं ?
एक हिन्दू मुश्तरका खानदानमें सिर्फ बाप और उसके पुत्रहीनहीं होते, परिक मूल पुरुष और उसके बिन ब्याहे लड़के, और लड़कियां, उसकी औरतें, उसके व्याहे हुए लड़के, और उन लड़कोंकी औरते व बच्चे, और विधवालड़की जिसे अपने पति के खानदानमें भोजन वस्त्र नहीं मिलता हो, होते हैं। इस तरहका खानदान जो यद्यपि स्वयं बहुतसी सूरतोंमें पूरा है, तो भी एक विशाल खानदानका अंश होसकता है। यानी ऐसे छोटे छोटे खानदान मिल कर एक बहुत बड़ा खानदान बनाते हैं। इस बड़े खानदानमें मूल पुरुषके सब मर्द औलाद और उनकी औरतें, लड़के, बिनव्याही लड़कियां होती हैं। चाहे खानदानः बड़ाहो या छोटा, उसके मेम्बर प्रायः इकट्ठे रहते हैं और मुश्तरका पूंजीसे उनका सब खर्चा होता है तथा अपने धर्मके सब कृत्य इकट्ठे अदा करते हैं । इस तरहसे रहनेवाले हिन्दू खानदानको अङ्गरेज़ी कानूनके जानने वाले 'ज्वाइन्ट हिन्दू फैमिली' ( Joint Hindu family ) कहते हैं; अर्थात् हिन्दू मुश्तरका खानदान, और इस खानदानकी आम सूरत यह है कि उसके मेम्बर भोजन, पूजन, और जायदादमें मुश्तरका होते हैं।
मामा और वहिनका लड़का-हिन्दूलॉ का कोई ऐसा नियम नहीं है, जिसके अनुसार पुत्रीका पुत्र और उसका नाना एकही हिन्दू मुश्तरका खानदान केमेम्बर माने जांय । दनजेर बनाम जहांगीर L. R. 6 All. 87 (Rev); 87 I.C. 6983 A. I. R. 1925 All. 775.
दो जुदा यानी बंटे हुये भाइयोंके केवल एक साथ रहने से यह नहीं साबित होता कि वे संयुक्त परिवारके सदस्य हैं । अलाहिदाभाइयोंका आराम सुविधा या शान्ति ी गरज़ से एक घरमें रहना असाधारण बात नहीं है। सदाशिवम् पिल्ले बनाम सानमुगम पिल्ले A. I. 1. 1927 Mad. 126.