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दफा ३७८-३८३ ]
नाबालिग्री और वलायत
दफा ३८१ अज्ञानको दो तरह की मियाद
( १ ) जब किसी अयोग्यता के अन्दर हक़ नालिशका पैदा होगया हो और उसकी मियाद क़ानूनी अयोग्यता खतम होनेके बाद तीन सालसे ज्यादाकी बाक़ी रहगई हो, तो वह उस मियाद के अन्दर दावा कर सकता है जो तीन वर्ष से ज्यादाकी उसे मिली है ।
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( २ ) जब किसी अयोग्यतामें नालिशका हक़ पैदा हुआ और उस raat मियाद अयोग्यता खतम होनेसे पहिले चली गई हो तो उसे अयोग्यता ख़तम होने की तारीख से तीन सालकी मुद्दत और मिलेगी अगर वह मियादजो चली गई है तीन वर्ष की या तीन वर्षसे ज्यादाकी हो ।
( ३ ) जब किसी अयोग्यता के बीचमें किसी नालिशका हक़ पैदा होगया हो और उसकी मियाद तीन वर्षसे कम, क़ानूनमें रखी गई हो तो अयोग्यता ख़तम होने की तारीख से उसे उतनीही मियाद मिलेगी जो उस कामके लिये क़ानूनमें नियत की गई थी। यानी उसे तीन वर्षकी मियाद नहीं मिलेगी ।
दफा ३८२ . अगर अज्ञानमुद्दई (वादी ) दौरान मुक़द्दमें में मरजाय
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इण्डियन लीमीटेशन एक्ट नं० ६ सन् १६०८ ई० की दफा १७६ के अनुसार ६ महीने के अन्दर मुद्दई या अपीलांटके स्थान में किसीको फरीक बनजाना चाहिये | देखो दफाका शब्दार्थ –“जब दौरान मुक़द्दमे में, मुद्दई या अपीलांट (जिसने अपीलकी है ) मरजाय तो उसकी जगहपर दूसरा क़ानूनी अधिकार रखनेवाला आदमी जो उस मरे हुए की जगहपर अदालत में हाज़िर होकर मुकद्दमे की पैरवी कर सके, उसे ६ महीने के अन्दर फरीक़ बन जाना चाहिये और यह मियाद उस तारीख से शुरू होगी जब वह आदमी मरा है." दफा ३८३ अगर अज्ञान मुद्दालेह ( प्रतिवादी ) दौरान मुक़द्दमें में
मरजाय
इण्डियन लिमीटेशन ऐक्ट नं० ६ सन् १९०८ ई० की दफा १७७ के अनुसार ६ मासके अन्दर मुद्दालेह या रिस्पान्डेन्ट बन जाना चाहिये । दफाका शब्दार्थ देखो -
"जब दौरान मुक़द्दमेमें प्रतिवादी या रिस्पान्डेन्ट ( जिसके विरुद्ध अपील किया गया हो ) मरजाय तो उसकी जगहपर दूसरा क़ानूनी अधिकार रखनेवाला आदमी जो अदालतमें हाज़िर होकर पैरवी करसके उसे ६ महीने के अन्दर फरीक़ बन जाना चाहिये और यह मियाद उस आदमी के मरने के दिन से शुरू होगी" ।