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दफा १८० ]
. साधारण नियम
पञ्चमानन्तरस्य गौणकालत्वापत्तिः । ततश्च जननमारभ्या तृतीयवर्षं तत्रापि तृतीवर्षस्य मुख्यकालतया ऊर्ध्वन्तु पञ्चमादर्षादित्युपसंहारे वर्षश्रवणाच्च अत्रापि चूड़ाशब्दस्य तृती - यवर्ष परतै वाभिप्रेतेति गम्यते । अन्यथा उपनीति सहभावपक्षे अष्टवर्षमकृत चूड़स्य परिग्रहापत्तिः । नचेष्ठापत्तिः ऊर्ध्वन्तु पञ्चमादर्षादित्यनेन विरोधात् । तस्मादाचूड़ान्तमित्यत्र चूड़ाशब्द तृतीयवर्ष पर एव युक्तः तृतीयानन्तर मा पश्चमे गौणः ऊर्ध्वन्तु गौणोऽपिनेति स्थितम् तदाह यज्ञेश्वर भट्टेण - तथाचाकृत चूड़स्य तृतीय वर्ष गृहणमतिप्रशस्तम् चतुर्थे पञ्चमे चाप्रशस्तमित्यर्थः ।
भावार्थ-- दत्तक मीमांसाका मत है कि पांच वर्षके उमरके भीतर गोद लिया जाय पश्चात् न लिया जाय दोनों बातोंसे एकही अर्थ निकलता है कि पांच वर्ष की उमर तक लड़का गोद लिया जाय । कालिका पुराणमें कहा है कि दत्तक आदि लड़के जिनका संस्कार गोद लेनेवाले पुरुषके घरमें किया गया हो वह पुत्र दूसरेके वीर्यसे पैदा होनेपर भी पुत्राताको प्राप्त हो जाता है इसके विरुद्ध जिन लड़कोंका संस्कार असली बापके गोत्र ( घर ) में किया गया हो और चूड़ा कर्म ( मुन्डन ) भी वहीं पर हुआ हो तो फिर वह लड़का दूसरेका पुत्र नहीं बन सकता। जिन पुत्रका चूड़ा आदि संस्कार गोद लेने
पुरुष घर न हुए हों तो वे लड़के दास कहलाते हैं यानी उनमें पुत्रत्व भाव नहीं आता। पांच वर्षकी उमर के बादल ड़का गोद लेनेके योग्य नहीं रहता इसलिये पांच बर्षकी उमर तकका लड़का पुत्रेष्ठी संस्कार करके गोद लेना चाहिये ।
जिस लड़केका चूड़ा आदि संस्कार गोद लेनेवाले पुरुषके घरमें किया गया हो ऐसा लड़का दत्तकपुत्र होता है । और अगर ऐसा न हो तो वह दास कहलाता है 'चूड़ा - आदि' के कहने से यहांपर यह मतलब है कि मुन्डन संस्कारसे लेकर आगेके संस्कार गोद लेनेवाले पुरुषके घरमें किये गये हों मगर यह मतलब नहीं लिया जायगा कि चूड़ा संस्कारके पहले वाले संस्कार भी उसीके घर होना चाहिये । ऐसा अर्थ करनेसे दुबारा कहनेका दोष आवेगा इसलिये पहलेका अर्थ मानना चाहिये । अगर जातकर्म, अन्नप्राशन आदि संस्कार असली बापके घरमें लड़केके हो जाएं तो कुछ हर्ज नहीं है,