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दत्तक या गोद
[ चौथा प्रकरण
मति पुत्रकी माता अपने पुत्रको दत्तक दे सकता है, मगर माता, बिना आशा पुत्रके पिताके दत्तक नहीं दे सकती । यह बात उस समय विशेष लागू होगी जब पिता जीवित हो ।
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(२) कुछ धर्मशास्त्रकार इस बातपर आपत्ति करते हुए यह कहते हैं कि, जब बिना पत्नीकी अनुमति लिये पति अपने अधिकारसे पुत्रको दत्तकदे दे तो माताका अधिकार जिस क़दर पुत्रपर था बाक़ी रह जाता है, और उसकी क्रियाकर्म तथा श्राद्ध आदि या अन्य धर्म कृत्योंके करनेका वह पुत्र अधिकारी रहता है जैसा कि वह उस दशा में होता जब कि दत्तक दिया गया था - नारद स्मृति देखो ।
(३) हिन्दूलॉके अनुसार पिता और माता दोनोंका अधिकार अपने पुत्रके दत्तक देनेका माना गया है; कोई दूसरा आदमी दत्तक नहीं दे सकता; देखो – 12 B. H. C. 362-376. लेकिन जब पुत्रके असली पिता या माताने अपने पुत्रको गोद देदिया हो और गोद लेनेबाले पिता या गोद लेनेवाली माता ने उसे स्वीकार कर लिया हो तो ऐसी सूरतमें पुत्रका बड़ा भाई अथवा दूसरे सम्बन्धी भी उसे दत्तकके कृत्य तथा दत्तकहवनको असली पिता या माताके स्थानमें होकर पूरा कर सकनेका अधिकार रखते हैं। देखो -7 Mad. 548-551
नारायणसामी बनाम कुप्पूसामी (1887) 11 Mad. 43 – 47 वाले केसमै जस्टिस आर्थर गालिस और मुत्तूसामी ऐय्यरने कहा कि "पिता और माताके दत्तक देनेके अधिकारमें पिताका अधिकार प्रधान है, मगर विधवा माताको भी पूरा अधिकार अपने पुत्रके दत्तक देनेका है, बशर्ते कि उसका पति अपने जीवनकालमें दत्तक देनेका क़ानूनन अधिकारी रहा हो और पतिने किसी तरह की मनाही न करदी हो;" यही बात जस्टिस् मेकलीनने 30 Cal. 964 में कही है।
मि० मेन अपने हिन्दूलॉ के सातवें एडीशन पेज १६६ में कहते हैं कि यह बात तय हो गई है कि बाप अपने पुत्रको बिना मञ्जुरी अपनी स्त्रीके दत्तक दे सकता है । यद्यपि स्त्रीकी मजूरी साधारणतः लेना चाहिये; नज़ीरें देखो - आलक मञ्जरी बनाम फकीरचन्द सरकार ( 1834 ) 5 Bom. Sel. R. 356; 11 Bom, H. C. 199.
शास्त्री जी० सी० सरकार अपने लॉ आफ् एडापशनके पेज २७४-२७५ में कहते हैं कि बापके दत्तक देनेके समय जब माता आपत्ति कर रही हो तो भी वह दत्तक जायज़ होगा, मगर जब कि माता दत्तक देती हो और बाप आपत्ति कर रहा हो, तो वह दत्तक अवश्य नाजायज़ होगा ।
( ४ ) मा, बाप जिसके मर गये हों ऐसे लड़केको 'यतीम' कहते हैं । यतीम लड़केको जब उसका बड़ा भाई उसे दत्तक दे दे तो यद्यपि यह गोद