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________________ दत्तक या गोद [चौथा प्रकरण दफा १०९ पुत्रके अयोग्य होनेपर दनक लेना जिस आदमीका पुत्र किसी कारणसे अयोग्य हो वह आदमी दत्तक ले सकता है या नहीं ? जब यह प्रश्न उपस्थित होगा तब यहभी प्रश्न हो सकता है कि अयोग्य पतिकी स्त्री पतिके जीवन काल में या पतिके मरने के बाद गोद ले सकती है या नहीं। यह प्रश्न और भी जटिल हो जाय, जब इस बात पर भी विचार किया जाय कि वह आदमी अयोग्य ही पैदा हुआ था या पैदा होने के बाद अयोग्य हो गया । इन सब प्रश्नोंका उत्तर संक्षेप से दफा १०३, १०७, १०८ और ६५३ में दिया गया है, कि अयोग्य पुरुष दत्तक ले सकता है मगर उस दत्तकका हक़ बापसे ज्यादा न होगा, सिर्फ रोटी कपड़ा पानेका अधिकारी होगा और जायदादका भीजो गोद लेनेवाले बापने अलहदा पैदाकी हो या प्राप्त की हो। यह विषय उत्तराधिकारका है इसलिये यहांपर छोड़कर आगे नवे प्रकरणमें 'उत्तराधिकारसे वंचित वारिस' के विषयमें कहा गया है। अगर लड़का हमेशाके लिये धार्मिक कृत्योंके पूराकरनेके अयोग्य ही पैदा हुआ हो, यानी वह पैदाइशी अंधा, बहरा, गूंगा, नामर्द, लंगड़ा, घणितकुष्ठी, पागल, और दीवाना, विक्षिप्त हो या किसी दूसरे कारणोंसे जिनसे कि वह उत्तराधिकार पानेके अयोग्य हो तो ऐसी सूरतमें यह समझा जायगा कि वह पुत्र धार्मिक कामोंके मतलब के लिये जीवित नहीं है । स्ट्रेन्ज हिन्दूला जिल्द १ पेज ७७ सरकारका लॉ आव एडाप्शन पेज १६६, मेकनाटन हिन्दूलॉ जिल्द १ पेज ६६. दफा ११० पुत्रके संसार त्याग देनेपर दत्तक जब कि पुत्र संसार और धन दोनोंको पूर्णरूपसे त्याग दे और संन्यासी या साधु या फकीर होजाय, तो उसके जीवनकालमें भी पिता दत्तक ले सकता है; देखो-पञ्जाब रिकर्ड 1875 S.S. 144; परन्तु आजकलके वैरागियों से यह लागू नहीं होगा, क्योंकि वे त्यागी साधु नहीं हैं-तिलकचन्द बनाम श्यामाचरण 1864; 1 W. R.C. R. 209; जगन्नाथपाल बनाम विद्यानन्द 1868,1 B. L. R. A. C..114; 10 W. R. C. R. 172, खुदी रामचरणजी बनाम रुक्मिणी वैष्णवी 1871; 15 W. R. C. R. 197. . इस प्रश्नपर एक्ट नं० २१ सन् १८५० का असर पड़ता है सही परन्तु यह प्रश्न जायदाद या हक्रकी ज़बती का या केवल 'संसार त्याग देने' या धर्म या जातिसे निकाल दिये जाने के कारण विरासत के हक के बिगड़ जानेका नहीं है। दफा १११ अज्ञान (नाबालिग ) का गोद लेना राजेन्द्रनारायण बनाम शारदा 16 Suth W. R. 548 में मित्र जजने माना है कि नाबालिग दत्तक ले सकता है परन्तु नाबालिगका दत्तक लेना उस
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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