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दफा ५६-६१]
वैवाहिक सम्बन्ध
गर्भके समयसे आठवें वर्ष ब्राह्मणका और गर्भसे ग्यारहवे वर्ष क्षत्रियका और गभसे बारहवे वर्ष वैश्यका यज्ञोपवीत करना चाहिये।
पहले ऐसा कोई भी द्विज नहीं था जिसका यज्ञोपवीतसंस्कार न किया जाता हो परंतु आजकल कुछ क्षत्रियों और वैश्योंमें इसकी पृथा कमजोर हो गई है विवाह के पहले उनका यज्ञोपवीत नाममात्र करा दिया जाता है उसे 'दुर्गाजनेऊ' कहते हैं सो भी बहुतेरोंका नहीं होता। हिन्दूला में यह सिद्धान्त माना गया है कि द्विजोंमें यज्ञोपवीतके बिना विवाह नहीं हो सकता यह बात आसानीसे साबित हो सकती है मगर इसके विरुद्ध साबित करना उतनाही कठिन है। ब्राह्मणों की संख्या ऐसी बहुत है जिनका यह संस्कार पृथक होता है और यशोपवीत पहने रहते हैं। क्षत्रियों और वैश्योंको इस बात पर ध्यान देना चाहेये यज्ञोपवीत अलहदा करके तब विवाह करना चाहिये।
जिन हिन्दु जातियों में कोई कैद नहीं है उन हिन्दुओंको अधिकार है कि किसी भी उमरमें विवाह करें; देखो 14 Mad. 316-318 और द्विजोंके लिये सिर्फ इतनी कैद परमावश्यक मानी गई है कि यज्ञोपवीतके पहले विवाह नहीं कर सकते उमरकी कैद विवाह केलिये पहले नही थी पर अब हो गई है। देखो इस प्रकरणके अंन्तमें चाइल्ड मेरेज रिस्ट्रेण्ट एक्टका मसविदा । दफा ६१ तलाक (Divorce )
हिन्दूला में तलाक नहीं है क्योंकि हिन्दुओंमें विवाह एक संस्कार माना गया है। ( देखो दफा ३६) प्रत्येक मनुष्यका कर्तव्य कर्म है, खास कर द्विजोंमें विवाह संस्कार आवश्यक बताया गया है। विवाह आनन्द लिये नहीं बल्कि एक ज़रूरी कर्तव्यकर्म है, अपनी आत्मिक शांति और अपने पितरोंके लाभ के लिये यह संस्कार किया जाता है। हिन्दू विवाह का वन्धन पति और पत्नीमें जन्म भरका होता है।
___ धर्मशास्त्रकारोंने स्त्री और पुरुषका अविच्छिन्न संयोग बताया है, · स्त्री को अन्य पतिका निषेध ज़ोर देकर कहा है देखो मनु अ० ५
कामं तु क्षपयेद्देहं पुष्प मूल फलै शुभैः न तु नामापि गृह्णीयात्पत्यौ प्रेते परस्य तु । १५७
आसीता मरणाक्षांता नियता ब्रह्मचारिणी यो धर्मः एक पत्नीनां काङ्क्षन्तीतमनुत्तमम् । १५८ अनेकानि सहस्राणि कुमारं ब्रह्मचारिणाम् दिवं गतानि विप्राणामकृत्वा कुल संततिम् । १५६