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विवाह
[दूसरा प्रकरण
मृते भर्तरिसाध्वी स्त्री ब्रह्मचर्ये व्यवस्थिता स्वर्ग गच्छत्यपुत्रापि यथा ते ब्रह्मचारिणः । १६० अपत्य लोभाधातु स्त्री भर्तारमति वर्त्तते सेह निन्दामवाप्नोति पतिलोकाच्च हीयते । १६१ नान्योत्पन्ना प्रजास्तीह नचाप्यन्यपरिग्रहे न द्वितीयश्च साध्वीनाकचिद्भर्तोपदिश्यते। १६२
स्त्रीको उचित है कि पति के मरने पर पवित्र फूल, मूल और फलको खाकर जीवन बितावे व्यभिचारकी बुद्धिसे दूसरेपुरुषका नाम भी न लेवे । एक पतिवाली स्त्रीयोंके उत्तम धर्मकी इच्छा करनेवाली स्त्री अपने मरनेके समय तक क्षमायुक्त, नियमचारी, और ब्रह्मचारिणी होकर रहे । जिस प्रकार से हज़ार कुमार ब्रह्मचारी ब्राह्मणोंने बिना संतान उप्तन्न किये ही स्वर्ग पाया है उसी भांति पतिव्रता स्त्रियां अपुत्रा होने परभी पतिके मरने पर केवल ब्रह्मचय धारण करक स्वगेम जाती हैं। जो स्त्री पुत्रके लोभसे व्यभिचार करती है वह इस लोकमें निन्दित और पतिके लोकसे गिर जाती है। अन्य पुरुषसे उप्तन्न सन्तान से स्त्रीका तथा अन्य स्त्रीसे उप्तन्न सन्तानसे पुरुषका धर्मकार्य नहीं हो सकता । किसी शास्त्रमें पतिव्रता स्त्रीको दूसरा पति करने का उपदेश नहीं है । यही बात जो मनुजीने कही है ठीक पराशरने भी कही है देखो-पराशर स्मृति अ० ४ श्लोक ३०, ३१, ३२, ३३; व्यासस्मृति अ०२-५२, ५३: वसिष्ठ स्मृतिका अ० १७ श्लोक ६७, ६८, ६६, ७०, ७१; और नारदस्मृति १२-११ से १८
कुडोमी बनाम जोतीराम 3 Cal. 305 और शङ्करालिङ्गम् बनाम सुबन 17 Mad. 479 में माना गया कि यदि किसी जाति में तलाक़की रवाज आम हो तो मानी जा सकती है।
मज़हबके बदल देने या जातिच्युत हो जानेसे विवाहका सम्बन्ध नहीं टूट जाता और न स्त्री पुरुष दोनो इस सबब से बालिंग हो जाते हैं, और न वह स्त्री जिसका पति दूसरे मज़हबमें चला गया हो वेश्या बन जाती है। देखो--गवर्नमेण्ट आफ बम्बई बनाम गंगा 4 Bom. 330; 9 Mad. 466; 18 Cal. 264; 23 Mad. 171, 177; नरायन बनाम त्रिलोक 29 All. 4.
मिस्टर मेनका कहना है कि, हिन्दुओंका विवाह धार्मिक रसूम है, कन्ट्राक्ट नहीं है इस लिये पति और पत्नी दोनों समझदार हों इस बातकी ज़रूरत नहीं है देखो मेन हिन्दूलॉ 7 Ed. P. 108; 5 All. 513 दिवेलियन