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दफा ५५]
विवाहमें वर्जित सपिण्ड
ऐसा भी नहीं हो सकता क्योंकि कन्याको अपने गोत्रसे तीन गोत्रके फरकमें होना चाहिये मगर कमलाके साथ महेशका विवाह हो सकेगा क्योंकि कमला तीन गोत्र हटी हुयी है।
इस उदाहरणमें विजयका पुत्र जय और लड़की श्यामा बताई गयी, इसी तरहपर जयकी दो लड़कियां लक्ष्मी-सावित्री और एक पुत्र मकरन्दके दो लडके और दो लडकियां दिखाई गयीं हैं यह सब बराबर दरजोंके समझने के लिये दिखाये गये हैं जैसे कांता अगर लक्ष्मीधरकी लड़की होती तो भी एकही मतलब होता।
(३) विवाहमें सपिण्ड कन्या वर्जित की गयी है ऊपर यह बता चुके हैं कि पितासे सात और मातासे पांचवीं पीढ़ीके समाप्त होनेपर सपिण्ड विवाहके मतलबके लिये नहीं रहता अब प्रश्न यह उठता है कि सपिण्डका हिसाब किससे लगाया जाय ? साधारण उत्तर यह है कि सपिण्ड हमेशा उस लड़केसे जिसका विवाह होना है देखा जायगा । यानी यह कि, कहीं वरके सपिण्डमें तो वह कन्या नहीं है जिसका उसके साथ विवाह होता है।
(४) संस्कृत धर्मशास्त्रकारोंका अन्तर्भाव यह मालूम होता है कि यदि वर्जित दरजोंकी कन्याके साथ (जो दरजे सन्देहित हैं ) विवाह हो गया हो तो कन्या धार्मिक कृत्योंके और वैवाहिक सम्बन्धके पानेकी अधिकारिणी नहीं रहती। ऐसा होनेपर भी वह स्त्री दूसरे पुरुषके साथ अपना विवाह नहीं कर सकती और वह अपने पहले पतिसे अपने भरण पोषणके पानेकी अधिकारिणी है। देखो-आपस्तम्ब २-५-११, गौतम ४-२-५, विष्णु १४-६-१०, नारद १२-७, मांडलीक ४११, वास्तवमें होता यह है कि एकही गोत्रकी लड़कीसे विवाह नहीं किया जाता परन्तु सपिण्ड सम्बन्ध माताकी ओर तीन और पिताकी ओर पांच पीढ़ी तक ज़रूर ही माना जाता है इस नियमका कभी उल्लङ्घन नहीं किया जाता। दफा ५५ दत्तकसे विवाहका सपिण्ड नहीं टूटता
दत्तक लिया हुआ लड़का अपने दत्तक लेने वाले माता पिता और अपने असली माता पिताके सपिण्ड सगोत्रसे विवाह नहीं कर सकता । दत्तक लिये जानेके कारण वैवाहिक कैदें नहीं टूट जातीं, इस विषयमें बृहस्पतिका वचन है कि
मातुःस्वसा मातुलानी पितृव्यस्त्री पितृष्वसा श्वभूः पूर्वजपत्त्ना च भातृतुल्याः प्रकीर्तिताः।
अर्थात् माताकी बहन, मामा या चाचाको स्त्री, बापकी बहन, सास, और बड़े भाईकी स्त्री यह सब माताके तुल्य हैं । दत्तक पुत्रके विवाहमें दोनों
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