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विवाह
[दूसरा प्रकरण
माता पिताओंकी तरफसे सपिण्ड विचार किया जायगा अर्थात् वह दोनों परिवारोंकी सपिण्ड कन्याके साथ विवाह नहीं करसकता और देखो दफा २५७ दफा ५६ सपिण्डमें किये हुए विवाहका परिणाम
सपिण्डमें किये हुए विवाह नाजायज़ हैं लेकिन शर्त यह है कि अगर किसी जातिमें ऐसी रसम हो तो वह जायज़ माना जा सकता है; देखो-- लक्ष्मणकुंवर बनाम मरदानसिंह 8 All. 143.
बम्बईमें अकोला और सोलापुरकी तरफ मामाकी लड़कीके साथ विवाह जायज़ है ऐसे भी कई मामले हुए हैं जिनमें मामाकी लड़की और बुवा की लड़कीके साथ विवाह जायज़ माना गया । महाराष्ट्रोंमें ऐसा विवाह नाजायज़ नहीं माना गया।
(३) वैवाहिक सम्बन्ध
दफा ५७ भिन्न जातियोंके परस्पर विवाह
भिन्न जातियोंके परस्पर विवाह अब प्रायः नहीं होते पहलेके ज़मानेमें विवाहके सम्बन्धमे जातिका विचार नहीं किया जाता था मगर अब ऐसा होना बन्द हो गया है । याज्ञवल्क्य कहते हैं कियाश०- यदुच्यते दिजातीनां शूद्रादारोपसंग्रहः
नैतन्मममतं यस्मात्तत्रात्मा जायते स्वयम् । ५३ मनु०- न ब्राह्मणक्षत्रिययोरापद्यपिहि तिष्ठतोः
कस्मिंश्चिदपि वृत्तान्ते शूद्रभार्योपदिश्यते । ३-१४ हीनजाति स्त्रियं मोहादुदहन्तो दिजातयः कुलान्येवनयन्त्याशु ससन्तानानि शूद्रताम् । ३-१५ शूद्रांशयनमारोप्य ब्राह्मणो यात्यधोगतिम् । जनयित्वा सुतं तस्यां ब्राह्मण्यादेव हीयते । ३-१७
द्विज पुरुष और शूद्रास्त्रीके परस्पर विवाह मुझे मान्य नहीं हैं क्योंकि स्त्री अपनी श्रद्धागिनी होना चाहिये । मनुने इसे माना है, वह कहते हैं कि,