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हिन्दलों के स्कूलोंका वर्णन
[प्रथम प्रकरण
तय हुआ कि इस बात साबित करनेके लिये कि फरीक मिताक्षराके अधीन थे काफी शहादत नहीं है । नागेन्द्र नाथराय बनाम जुगुलकिशोर 29 C. W. N. 1652; 90 1. C. 281; A. I. R 1925 Cal. 1097.
खान्दानी पुरोहितके मातहत स्थानीय पुरोहितके कार्यसे यह नहीं प्रमाणित होता कि किसी प्रवासी खान्दानके लिये स्थानीय कानून प्रयोगनीय है। महाराजा कोल्हापुर बनाम एम० सुन्दरम् अय्यर 48 Mad. 1; A. I. R. 1925 Mad. 497.
प्रवासी खान्दानोंके सम्बन्धमें उनके नये निवासमें भी उनकी जातीय कानून उनपर लागू होगी, यदि वह उनके प्रवासके समय कानून रही होगी, और उन्होंने उस प्रांतकी कानून को, जिससे वह आये हैं, त्याग न दिया होगा महाराजा कोल्हापुर बनाम एस० सुन्दरम् अय्यर 48 Mad. 1; A. I. R. 1925 Mad 497. . उदाहरण--सेठ लक्ष्मीचन्द मारवाड़के रहनेवाले हैं जहां बनारस स्कूल प्रचलित है रोज़गारसे बम्बई में रहने लगे उन्होंने एक लड़का गोद लिया; पीछे एक असली लड़का पैदा होगया, उक्त सेठजी दोनों पुत्रोंको छोड़कर मरगये। अब प्रश्न यह उठा कि किस लड़केको कितनी जायदाद मिलना चाहिये। अगर विरुद्ध सावित न हुआ हो तो मानलिया जायगा कि सेठ लक्ष्मीचन्द अपने साथ बनारस स्कूल लाये थे उसके अनुसार एक चौथाई दत्तक पुत्रको और
तीन चौथाई औरस पुत्रको जायदाद मिलेगी। अगर यह सावित होगया हो कि उन्होंने बनारस स्कूल छोड़ दिया था तो बम्बई स्कूलके अनुसार । एक पांचवां हिस्सा दसक पुत्रको और चार हिस्से औरस पुत्रको मिलेगीदेखो दफा २७०-२७१
नोट-किसी खास कुटुम्ब, या परिवारकी, अगर कोई खास रखाज हो तो उसका भी यही असर होगा। दफा ३७ जातिसम्बन्धी मुकद्दमें
- कोई अङ्गरेज़ी अदालत ऐसा मुकदमा नहीं सुनेगी जिसमें केवल क़ौम या जाति-सम्बंधीप्रश्न हों और उसमें जायदादकी हक़दारीका प्रश्न न हो, देखो-जेठाभाई बनाम चपसी कुंवरजी ( 1909 ) 34 Bom. 467; 11 Bom L. R. 1011. ____अगर कोई अपनी कौम या जातिसे बाहर कर दिया गया हो, या उस से उसकी क़ौम या जाति वालोंने सम्बंध तोड़ लिया हो, अथवा वह किसी रवाज या धर्मशास्त्रके किसी वचनानुसार धार्मिक हक़ोंके पानेसे वंचित कर दिया गया हो तो ऐसे मामलोंमें अदालत कोई दखल नहीं देगी जबतक कि