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बफा ३५-३६]
हिन्दूलों के स्कूलोंका वर्णने
हुआ है। प्रवास सन् १६७४ ई० में हुआ था। तजौरके अन्तिम राजाकी रानी ने बिना अपने पतिके अधिकारके ही, अपने लिये एक पुत्र गोद लिया। दस्तक के जायज़ होने में इस बिनापर एतराज़ किया गया कि शाही खान्दानने बम्बई प्रान्तसे प्रवासके पश्चात् उस हिन्दूलॉ को जो महाराष्ट्र देशमें प्रचलित था त्याग दिया था, और उस कानूनके अनुसार भी, जो उनके प्रवासके समय बम्बई प्रांतमें प्रचलित था कोई विधवा अपने पति या सपिण्डोंकी रज़ामन्दी के बिना दत्तक नहीं लेसकती थी। तय हुश्रा कि कानून उत्तराधिकार प्रत्येक मनुष्यके ज़ाती कानूनके अनुसार होता है और जबकि एक स्नानदान, एक जगह छोड़कर दूसरी जगह, जहां पर दूसरे प्रकारका कानून प्रचलित होता है, जाता है तब वह अपना ज़ाती कानून अपने साथ लेजाता है । और यह जाती कानून, उस खान्दानका वैसाही कानून होगा, जैसा कि वह प्रवास के समयमें था थौर मुकदमेकी शहादतसे भी यह स्पष्ट है कि खान्दान अपने ज़ाती कानूनके ही अधीन था । और यह कि बम्बई प्रान्तके महाराष्ट्र देशमें केवल विधवा को, जिसके पतिने खुलासा तरीके पर उसे गोद लेनेसे मना न किया हो, अधिकार है कि वह बिना अपने पतिके सम्बन्धियोंकी अनुमतिके ही गोद ले, चाहे उसके पतिकी जायदाद उसपर अर्पितकी गई हो या नहीं और चाहे उसका पति अलाहिदा मरा हो या न मरा हो; और किसी विरोधी शहादतके न होनेपर प्रवासके समयका कानून वही कानून माना जाना चाहिये जिसका निर्णय अदालत द्वारा हुआ हो; और यह कि इन कारणोंसे दत्तक जायज़ है । महाराजा कोल्हापुर बनाम सुन्दरम् अय्यर 48 Mad. I; A. I. R. ( 1925 ) 497.
जब एक हिन्दू किसी जगहसे दूसरी जगह जा बसता है तब उसे अधिकार रहता है कि वह अपने ज़ाती नियम यानी अपने मूलनिवासके नियम उस नयी जगहमें ले जाय । वह उन नियमोंका पालन कर सकता है या उन्हें त्याग सकता है; किन्तु जब किसी ऐसे कानूनकी यहस आ पड़ेगी जो समीप वर्ती जगहोंसे भिन्न होगी, तब उस कानूनके सुबूतकी ज़िम्मेदारी उस व्यक्ति पर होगी, जो उसे पेश करेगा। श्यामलाल शाह के मुकदमें में-L.R. 6 All. 186; A. I. R. 1925 All 648.
जब फरीकोने, जो बङ्गालके निवासी थे यह दावा किया कि वे मिताक्षरा के अधीन हैं और शहादतमें केवल यह पेश किया कि उनके पूर्वज किसी न किसी समय बङ्गालके बाहर प्रदेशसे आये होंगे, किन्तु यह प्रमाणित न हो सका कि वे कब आये थे या कहांसे आये थे और वे आमतौर पर बनाली पुरोहितोंकी नौकरियोंसे लाभ उठाते रहे और किसी एक खास समय पर एक उत्तरीय मिश्र ब्राह्मणकी नौकरी प्राप्त कर सके थे।