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हिन्दूलॉ के स्कूलोंका वर्णन
[प्रथम प्रकरण
कियत उनके पैदा होनेसे नहीं पैदा होजाती बल्कि बापके मरनेके याद उस मिलकियत पर बेटोंका हक़ पैदा होता है इसलिये मौरूसी जायदादमें भी बाप की जिंदगीमें बिला रज़ामंदी वापके तक़सीम नहीं हो सकती । बापके मरनेपर बेटोंको सिर्फ वही जायदाद मिलेगी जो बापने छोड़ी हो । यह ज़रूर है कि बापचाहे असली मौतसे या कानूनी मौतसे मरा हो मगर पहिले लड़कोंको उसकी छोड़ी हुई सब जायदाद ज़रूर पहुंच जावेगी । सब लड़के उत्तराधिकारके अनुसार मालिक होंगे और बटवारा करानेका हन उस वक्त पैदा हो जावेगा देखो दफा ४६१ से ४७५
मिताक्षरा स्कूलमें ऐसा नहीं होता बापके जीतेजी बेटा मौरूसी जाय दादका बटवारा करा सकता है क्योंकि बेटा कोपार्सनर है, और अगर बापने बिला कानूनी ज़रूरतके जायदाद बेच दी हो या रेहन कर दी हो तो उसे वेटा मंसूख करा सकता है । देखो दफा ४५५ से ४५७ दफा १८ शामिल शरीक हिस्सेदार
दायभागमें सहोदर भाई या शामिल शरीक खानदानी, शामिल शरीक परिवारमें रहनेपर भी सब अपनेअपने हिस्सेके अलहदा अलहदा मालिक समझे गये हैं क्योंकि यहमाना गया है कि अविभक्त परिवारमें हरएक हिस्सेदार अपने हिस्सेके अनुसार जायदादको अपनी मरज़ीके मुताबिक दूसरेको बेच सकता है, रेहन कर सकता है, उसके कर्जेमें भी सिर्फ उसीका हिस्सा पाबंद होगा।
मिताक्षरा इसके विरुद्ध कहता है उसका कहना है कि कोई आदमी जो शामिल शरीक परिवारका हो बिना बटवारा के अपना कोई हिस्सा स्थिर नहीं कर सकता कि उसका कितना है, और न इन्तिकाल कर सकता है जब तक कि सब कोपार्सनरोंकी मंजूरी प्राप्त न हो। दफा १९ उत्तराधिकार
दायभागमें वरासत यानी उत्तराधिकारमें मज़हबी असर सबसे प्रधान माना गया है, धार्मिक फल उस वरासतका क्या होगा इस बातको ध्यानमें रखकर यह विषय निश्चित किया गया है, नज़दीकी और दूरके रिश्तेदारोंमें फरक़ नहीं माना गया, सबको समान समझा है तथा स्त्रीसम्बन्धी रिश्तेदारोंके मुक़ाबिलेमें मर्दसम्वन्धी रिश्तेदारों की प्रधानता नहीं दीगयी।
मिताक्षरा स्कूलमें समान नहीं माने गये धर्मकृत्यके अनुसार दरजे कायम किये गये हैं यद्यपि दायभागमें भी दर्जे कायम गये किये हैं परंतु दोनोंके दोंमें बहुत फरक है इसमें मर्दसम्बन्धी रिश्तेदारों की प्रधानता दी गयी है।