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दफा १८-२२]
हिन्दूलॉ के स्कूलोंका वर्णन
दफा २० मुश्तरका जायदादमें बापका हक .
दायभागके अनुसार अविभक्त परिवारमै बापको खानदानकी संपूर्ण जायदादका अकेला मालिक स्वीकार किया गया है। इस बातसे बिल्कुल इन्कार किया है कि मौरूसी जायदादने बेटे का हक्क उसकी पैदाइशसे पैदा हो जाता है, इसलिये बापको कुल पैतृकसंपत्तिको इंतिकाल कर देनेका अधिकार उसकी मरज़ीपर निर्भर है, लड़केका हक़ उसमें कुछ नहीं माना गया और न लड़का पैतृकसंपत्तिको बापकी मौजूदगीमें बटवारा करा सकता है क्योंकि वह कोपार्सनर नहीं माना गया।
उदाहरण--हिन्दू शामिल शरीक खानदानकी जायदादका मालिक रमाशङ्कर अपने बापके मरनेपर हुआ, रमाशङ्करके एक लड़का मुकुंद पैदा हुआ मुकुंद अपने पिता रमाशङ्करकी जिंदगीमें, पितामह (दादा) की जायदादमें कोई हक़ नहीं रखता और जब उसको पिताकी मौजूदगीमें मौरूसी जायदादमें कोई हक़ पैदा नहीं हुआ तो इसलिये वह अपने हिस्सेका बटवाराभी नहीं करा सकता क्योंकि उसकाही असलमें हक नहीं है। पिताको पूरा अधिकार है कि वह अपनी मरज़ीके अनुसार जिसे चाहे दे दे, या बेच दे या रेहन करदे ।
मिताक्षराके अनुसार ऐसा नहीं हो सकता लड़केकी पैदाइशसे उसका हक़ मौरूसी जायदादमें पैदा हो जाता है और पिता लड़केके हकको अपने अधिकारसे इन्तकाल नहीं करसकता,और लड़का पितासे मौरूसी जायदादका बटवारा करा सकता है। दफा २१ पतिकी जायदादमें विधवाका अधिकार
दायभागके अनुसार अविभक्त परिवारकी विधवा अपने पतिकी जायदादके हिस्सेपर मालिकाना अधिकार रखती है; और वह अपने पतिके हिस्सेकी वारिस होती है, अगर उसका पति लावल्द मरा हो तो अपने हिस्सेको तकसीम करा सकती है।
मिताक्षराके अनुसार कोई हिन्दू विधवा अविभक्त परिवारमें उसवक्त तक पतिकी जायदादकी मालकिन नहीं हो सकती जबतक कि उसका पति तनहा और जुदागाना मालिक होकर न मरा हो। अगर पति मुश्तरका खानदानमें मर जावे तो विधवा को अलाहिदा करनेवाला हक़ भी मर जाता है। दफा २२ बटवारामें विधवाका अधिकार
दायभागमें, कोई आदमी अपनी संतानमें अपनी खुद कमाई हुई जायदादका या पैतृकजायदाद या दोनोंका बटवारा करेगा तो उसे लाज़िम होगा कि पुत्रोंके साथ मांका हिस्सा बरावर देवे, और ऐसी सूरतमें जबकि कोई