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हिन्दूलॉ के स्कूलोंका वर्णन
[प्रथम प्रकरण
दफा १६ मिताक्षरा और दायभागमें क्या फर्क है ?
अगर मिताक्षराके साथ दायभागका मुक़ाबिला किया जाय तो यह बात मालूम होजायगी कि दोनों धर्मशास्त्रोंमें सिद्धांत पक्षका ही विरोध है। समझनेके लिये कुछ सिद्धांत दोनों स्कूलोंके नीचे देखिये,अागेप्रकरण ६,८ और ६ में विस्तारसे वर्णन किया गया है।
मिताक्षरा और दायभागका भेद मिताक्षरा
दायभाग १-लड़केको जन्मसेही पैतृक जायदाद लड़केको जन्मसेही पैतृक जायदादमें में हक प्राप्त हो जाता है। बाप कोई हक़ नहीं प्राप्त होता। बाप अपनी अपनी जिंदगीमें मौरूसी जायदाद | जिंदगीमें मौरूसी जायदादका पूरा का पूरा अकेला मालिक नहीं है। अकेला मालिक है। लड़का बापले लड़का बापसे बटवारा करा सकता बटवारा नहीं कर सकता। देखो दफा है। देखो दफा ३८६, ४०२, ५०५ ४६२,४६३, ४६४ २-मुश्तरका खानदानमें हरएक आदमी मुश्तरका खानदानमें बापके मरनेके का हिस्सा अलहदा नहीं होता, वह बाद भाइयोंमें या दूसरे भिन्न शाखासब सरवाइवरशिपके साथ मुश्तर- वाले रिश्तेदारोंमे हरएक आदमी अपने का काबिज रहते हैं तथा मदरास | अपने हिम्सेकी जायदादका पूरा मालिऔर बंबई प्रांतके सिवाय कोई क है, और वह बिना मंजूरी दूसरे आदमी अपने मुश्तरका हिस्सेका शरीक कोपार्सनरोंके अपने हिस्सेका इन्तकाल नहीं कर सकता बिना इंतकाल कर सकता है, रेहन कर मंजूरी दूसरे कोपार्सनरोंके। सकता है, दान करा सकता है। ३-वरासतका क्रम करीबकी रिश्तेदारी | वरासतका क्रस धार्मिक प्रभावपर
या खानदानी संबंध हीसे निर्धारित निर्भर माना गया है। स्त्रीसंबंधी रिश्तेकिया जाता है। स्त्रीसंबंधी रिश्ते- दारोंके मुक़ाबिलेमें मर्दसंबंधी रिश्तेदारोंके मुक़ाबिलेमें मर्दसंबंधी रिश्ते- दारोंको प्रधानता नहीं दी गयी है। दारोंको प्रधान्ता दीगयी है। ४-मुश्तरका खानदानके किसीभीआद- मुश्तरका खानदानके किसी आदमीके मीके नाम जो जायदादखरीदी गयी नामसे अगर कोई जायदाद खरीद की हो उसे अदालत मुश्तरका जायदाद | गयी हो तो अदालत यह नहीं ख्याल ख्याल करती है और जो आदमी करेगी कि वह मुश्तरका है । जो यह उसे मुश्तरका न वयान करता हो | बयान करता हो कि जायदाद मुश्तरका पारसुबूत उसी पर होगा । देखो- है तो बारसुबूत उसीपर होगा । देखो