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सोलहमो सन्धी। माणुसिदेवितिरियगइसंभम चित्ति कटि पाहाणि सविन्भम । चउंहिंमि नारिहुं मणवयकायहिं कियकारियअणुमायणभेयहिं । पंचवि इंदियाइं जो खंचइ अखलिय बंभयारि सो वुच्चइ । जो पुणु तासु अणुव्वउ पालइ सो अन्नहिं संगमु न निहालइ । नियदारहो संतोसिं अच्छइ अन्नन्नई विविहई न नियच्छह । जो एउं जि करेवि न सक्कइ सो सग्गइं दारइं परिसकइ । जा तियवेस भणिवि जणु जाणइं तहि धणु देइ अंगि रइ माणइं ।
जा पुणु अत्यहो करु न समप्पइ तहि कंदप्पवियारु न जंपइ । घत्ता। मणु पसरंतु धरेइ परिहरइ विरुद्धउ जणवयहो।
वजंतहो घरवासु वउ एउ चउत्थउ सावयहो ॥९॥ पंचमई अणुव्वइ वचमाणु जउ लेइ परिग्गहु अप्पमाणु । जे तउ परिचिंतिवि नियउ लेइ तित्तियहो समग्गलु नउ धरेइ । जिणपुज्जमहिम दाणइं करेवि उवभोयभोयकीलई रमेवि । तहविहु नउ निदृइ धणु खलेण परिवड्डइ वयहो महाफलेण । परजुवइउ जो जोवइन लोइ अहिययरु तासु सोहग्गु होइ। जो नियउ अदत्तादाणु लेइ ववसायसयहिं तहु तं फलेइ । जो चवइ सच्चु निच्छयमणेण सो मेरुसरिसु दीसइ जणेण । जो जीवहु इच्छइ नउ पमाउ अणुदिणु परिवड्डइ तासु आउ । जो मारइ जीउ निरावराहु इहरत्ति परत्तिवि सो अणाहु। जो जंपइ जणवइ दुप्पवंचु वंचइ सयणइं बोल्लिवि असच्चु ।
धणु हरइ कूडविन्नाणजाणि करि तासु तं जि लम्गइ नियाणि । घत्ता । चोरइ जो परदव्वु दुव्वसणविडबियकाउ।
सो मारिजइ लोइ खरविरसंतु रसंतु वराउ ॥१०॥ जो परतिय परिहरिवि न सकइ सो इहरत्ति विचरिउ कलंकइ । सुअणहिं कण्णु अकन्नहिं सीसइ जणि चंडालु नियाणु अ दीसइ । फलु पञ्चक्ख एउ इह लोएवि दुग्गइगमणि पडइ परलोइवि। पंचाणुव्वयाई संखेविं कहियइं जिह सिटइं पुरएविं। अहु नरिंद साहम्मियसंगय एव्वहिं अक्खमि तिन्नि गुणव्वय । दिसिविदिसई गमणई फुडु माणहो उप्परि पञ्चक्खाणु पमाणहो । पहरणपासबंधदुच्चारहं कुक्कुडमोरनउलमज्जारहं ।