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भविसयत्तकहाए
एम्वमाइ अन्नहमि अणिगृहं न करिव्वउ संगहु पाविट्ठहं । भोयपभोयमाणु जं किज्जइ तं तइयउ गुणवड जाणिजइ । जे गुरुपुज्जदाणसंजमरय अणुदिणु जे करंति जीवहो दय । तेहिं समाणु सणेहु करिव्वर अण्णुवि मणु मज्झत्थु धरिव्वर । घत्ता । इय एमाइविहीए गुणवयहं नराहिव सिहई |
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सिक्खावयहं चयारि सुणु जेम जिणागमि दिनहं ॥ ११ ॥ पहिलउ भवियणमणआणंदणु जिणहं तिकालु करिव्वर वंदणु । जं बहुसंखहिं दिणु मणु खंचइ तं बीयउ सिक्खाव बुच्चइ । बीउ पुणु पोसइउववासई बहुवयसंजमनियमपयासई । तइयउ सिक्खावउ जो पालइ दाराविक्खणु जइहु निहालइ । चउथउ पुणु सल्लेहण भावइ सो परलोइ सुरत्तणु पावइ । अहो इहपरलोयहो परमसिक्ख इय बारहविह सावयहं दिक्ख । आहार विगहफासुयपविति दिणमेहुणिनिसिभोयणनिवित्ति । सणनिंबपमुहकुसुमाई जाई नउ असइ कयाइवि फासुआई । गुरुवच्छलु परपेसलसहाउ साहम्मियसत्थु महाणुभाउ । जणि मंदकसाउ विसुडलेसु भुंजइ भोयणु मुणिभुत्तसेसु । अरहंतु देव गुरु परमसाहु निग्गंथ भोक्खमग्गहु पवाहु | पडिवज्जइ अथिरु असारु सव्वु इय एहउ मणि आसन्नभव्वु । जो पुणु मइदुग्गहु दूरभव्वु सो मन्नहं मणि विवरीउ सब्बु । तो वियसियसियवयणारविंदु मणवेयहु मुहं जोवह नरिंदु । यत्ता । धम्मक्खाणु सुणेवि महएविहिं मणु आमोइउ । धणवइअंगरुहेण करसंपुटु सिरि संजोइउं ॥ १२ ॥
षोडशः सन्धिः । -
पंकयसिरिसुण मुणिवरु परमागमसारु । परिपुच्छिउ पुणुवि मणत्रेयहो भवसंचारु ॥
सलहिवि मुणिवरिंदु नरनाहिं पुच्छिउ सविणयवयणपवाहिं । परमेसर सियलडमहावरु एहु मणवेउ नाम विजाहरु ।
१ C adds इय भविसत्तकहाए धम्मत्थकाममोक्खाए बुहधणवालकयाए पंचमिफलवण्णणार भवि सयत्ततिलयपुरि धम्मक्खाणसवणो णाम सोलहमो संघी परिच्छेओ सम्मत्तो ।