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भविसयत्त हाए
घाणुवि सासूसास पमाणहो दिव्वउ जिणवरधम्मज्झाणहो । काएं काओसग्गु धरिव्वर पंचहं एम वियारु हणिव्वउ । धत्ता । पुव्वक्कयसुकएण लब्भइ धणु संपय लोइ ।
पुणरवि किजइ तंपि पहु सावयधम्मि निओइ ॥ ६ ॥ तं निणिवि सविणयविणयकाउ परिपुच्छइ कुरुजंगलहो राउ । परमेसर सीलचरित रम्मु ठिउ केम गिहासमि परमधम्मु । सुअणहो इच्छंत हो धम्मसारु उच्चारइ जो सवायहं सारु । तो अट्ठ मूलगुण केम होंति गुरु पंचाणुव्वय केम ठंति । गुणवयई तिन्निवृच्चंति का किम वुच्चहिं चउसिक्खावयाई । जिणसासणि जे बहुगुणविहेय वज्जरहि नाह इह वीसभेय । अक्खइ अहिणंदणु परमसाहु विणएं आयन्नई तिलयनाहु | अहो चंगउ पुच्छिउ परं पयत्थु जगि जीवहो सव्वहो इउ सयत्थु । परिणविउ जइवि पारंपरेण पुच्छिव्वउ तोवि महानरेण । धत्ता । धम्मक्खाणविसेसि परिपुच्छणि भत्तिपराहं । मणवयकायनिओइ कम्मक्खउ होइ नराहं ॥ ७ ॥ महु मज्जु मंसु पंचुंवराई खजंति न जम्मंतरसयाई । दिजंति न कहुवि हियत्तणेण पहु चिंतिज्जति वि नियमणेण । अन्नहोवि असंतहो अहियदोसु न करिव्वर मणि अहिलासु तोसु । ते अट्टमूलगुण एम होंति विणु तेहिं अन्नउत्तर न ठंति । सुणु नरवई पंचाणुत्र्याइं उवसंति गिहासमि धम्मि जाई । छज्जीवनिकायहो दद्यविहाणु बहुभेय एउ पढमउं पहाणु । ates बोलिज्जइ नउ असच्चु न करिव्वर डिंभु न मणि पवंचु । तइयउ व लेवि अलोहसारु न करिव्वउ परदव्यावहारु । धण धन्न सुवन्न पवन्न वत्थु घरु खित्तु चउप्पर दुप वत्थु । अवियप्पु अपत्थि जइवि आउ हुउ कालिं जइवि निरम्मणाउ | पिक्खइ महिमंडल पडिउ जंपि जइ लेइ अदत्तादाणु तंपि । धत्ता । तइयउ निहाई लोहु वीयउ परिसेसइ माय ।
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दुद्धरमयणवियारि वउ सुणहि चउत्थउ राय ॥ ८ ॥ अह तं मयणवियप्पवियारिं भज्जइ तिउ णियसुद्धिपयारिं । जुवइ होंति चयारि वियप्पहो मणु मोहंति मिलिवि कंदहो