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पंद्रहमो सन्धी
१०९ हल्लोहलि हवउ वइरिविंदु पिक्खइ तवंगि थिउ नरवरिंदु । तो लेविणु पोयणपुरहो वत्त चर बिण्णि पराइय चारुगत्त । परिपुच्छइ नरवइ साणुराउ कहिं वइ सो महिवालु राउ । कित्तिउ बलु कित्तिउ सुहडविंदु मंतण काई मंतइ नरिंदु। पणविप्पिणु तेहिंमि सुट्ट एम्व तहो पासि नाहिं बलु किंपि देव । जे जे पहाण सामंत केवि ते ते तहो नंदणु आउ लेवि।
अच्छइ नरवइ वइरायभट्टु तं पट्टणु हल्लोहलिउ सुटु । घत्ता । हिंडंतिहिं तित्थु घरि घरि सुच्चइ तउ चरिउ ।।
रिउघरिणिए नाह नयणिहिं कजलु अबहरिउ ॥ ६॥ चरवयणु सुणिवि रिउनिम्महेण वुच्चइ सुमित्तमणवल्लहेण । तज्जंतहं तज्जिउ मुहकरालि पहरिउ पहरंतहं भडवमालि । एवहिं वइरायपब्भ तेय कोक्किवि सम्माणहं सयल एय । तं निसुणिवि धाइय नर सधम्म विणिवारिय किंकर कूरकम्म । आणिउं मं भीसिवि वंदिसत्थु सइं जंपिउ पेसलु तह पसत्थु । पइसारिउ सजणु भव्वलोउ दरिसिउ नियसंपयपयविहोउ । भोयणु भुंजाविय बहुरसेण सकारुक्खेत्त महालसेण ।
दिन्नई वरवत्थविलेवणाई जायई पसन्नसन्नई मणाई। घत्ता । एकिक पहाण जइवि सकुँडल मउडधर ।
नउ पावहिं सोह विणु जयलच्छिए तोवि नर ॥७॥ सम्माणिवि सप्परिवारु सत्तु जोविउ अणंतु चित्तंगु वुत्तु । अहो साहु साहु सुहडत्तणेण उजालिय लीह भडत्तणेण । तं किउ जं जंपिउ तित्थु कालिदरिसाविउ अप्पउ भडवमालि। पुव्वन्जिय रणि जयलच्छि होइ पहरिवि जुज्झइ पाइक्कु लोइ। संवरिवि जाहु नियसामिसालु आविजहि पुणुवि लहेवि कालु। तो नवर भणइं अवणिंदजाउ अहो नरवइ तउ पसरउ पयाउ । अम्हई पुणु सुहडत्तणु अचंड छुड्डु न गय समरि सयखंडु खंडु।
तउ अप्पिवि सहुं जीविउ सरीरु विसहिउ निरोहपरिहउ गहीरु । घत्ता । जो चप्पिउ जेण तासु तेण सहुं कवण तुडि ।।
मइलियई न होंति फुल्लु सइत्तणु चारहडि॥८॥ रणि भग्गु मडप्फरु जेण जासु सो जीवउ सेव करेवि तासु ।