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बारहमो सन्धी।
भविसत्तोवि क्यणि वत्थंचलु देविणु हसिउ नयणहिं। जं हसिउ ताएं घर मम्मवेहु परियच्छिवि तातहितणउं गेहु । लइ सच्चउ जंपइ कणयमाल हउं वंचिउ आयहिं सयलकाल । तहिं चरिउ मज्झु केणवि न सिह सरलत्तणेण मइं नवि गविटु । लइ होउ किंपि न विण? कज्जु सामिणि सम्माणमि गंपि अज्जु । तो वुत्तु हसेविणु कणयमाल मंतणइं तुडु मई खित्त माल । हरियत्तगेहि लइ जाहुं बेवि अवराहु खमावहं पिउ चवेवि । संचल्लइ कयनिच्छउ करेवि हरिबलघरु संपाइयइं बेवि । तेहिंमि किउ घरगमणाहिवासु जामाएं पणमिय सिरिण सासु ।
मइ न मुणि कारणु किंपि एउ कंचणमालई उवइडु भेउ । घत्ता। जं दुम्मइमोहिं मणिसंखोहिं जं अवगणिय तुम्ह सुय।
तं रोसु न किजइ मज्झु खमिजइ भणु पडिवजह जेम धुअ ॥ ८॥ दुवई। तो कमलई वलेवि अवलोइउ मुहं कल्लाणमालहो।
कयसहिपक्खवाय परितुट्ठहि निरुवमगइ तमालहो । तो विहसेविणु कुवलयदलच्छि महियलु लिहंति उल्लवइ लच्छि । लीलाविलास जामाय होंति तं जुत्तु अजुत्तु वि जं करंति। परियाणिवि तुहुं वि सहाउ ताहि पणएं परिओसिवि लेवि जाहिं । जं दुकिउ किंपि किउ पुव्वि आसि अणुहविउ ताए तं तुम्ह पासि ।
ओसारिवि पुणु नियदुहिय वुत्त संवरहि माणु लइ जाहि पुत्त । किजइ न माइ अइदीहु रोसु उप्पजइ वलिवि महंतु दोसु । एयहो आयहो जइ न गय गेहि तो होइ अहिउ अवमाणु देहि । जो आराहिजइ कयविसेसु तहो उप्पाइजइ नाहि रोसु।
थिय जं अवहेरि करेवि बाल तं वुत्तु समासई कणयमाल । घत्ता । तो ताए वियड्ढई पगुणगुणड्डइं सहि ओसारिवि संठविय ।
नियसन्न समारिवि जणु ओसारिवि कंतहो नियडि परिहविय ॥९॥ दुवई । सहि चित्तंतराइं परियाणिवि जंपइ ताहि सक्खिणा ।
मा कयसावलेउ पिउ जोअइ. अडकडक्खपक्खिणा ॥ तेणवि दरिसिवि वम्महवियारु करि धरिवि पयंपिउ सोवयारु । माणिणि तउ इत्थु न कोवि दोसु जिम तुहुँ तिम सव्वहो चडइ रोसु। निक्कारणि मई तुहुं निरु किलिट्ठ नयविणयसीलगुणसयवरिह।