________________
५२
भविसयत्तकहाए एत्तिउ कालु आसि खलु देवरु एवहिं ढके साणुगद्दहु खरु । चंगउ नियकुलधम्मु सम्वारिउ पसुवहंतणउ मग्गु अवहारिउ । हियवई महु आसंक गुरुकी सा नियजणणि केम तउ चुक्की ।
निवडई किन्न वज्जु तउ मत्थई कवण केलि सहुँ मरणावत्थई । घत्ता । छेयावसाणि कुवि किं करइ जसु रु?उ जीविउ अवहरइ ।
हय पावकम्म विवरीयमइ सिविणेवि एउ कहिं संभवह ॥१०॥ तो सविलक्खु पयंपइ देवरु जंपहि काइं अणिटु असुंदरु। होसइ दोसु सइत्यनिवारणि एउ सव्वु मइं किउ तउ कारणि । जं वलिवंड करेवि न छेडमि तं किर केम माणु नउ खंडमि । तं निसुणिवि चिंतवइ महासइ खलिउ किंपि दुक्कम्मु करेसइ । दीसइ गरुआवेसु भरंतउ किम रक्खिउ बलिवंड करंतउ । जइ परिमुसिउ एण महु अंगउ तो पर सरणु मरणु आवग्गउ । तं जाणेवि उवहिउवसेवय हूअ पञ्चक्ख महाजलदेवय । हल्लोहलिउ लोउ वहणटिउ चलिउ पवणु विवरीउ परिहिउ ।
गहिरीजंति सलिल आवत्तई मोडिजंति परम्मुह पत्तई। घत्ता । आसन्न विहुर उल्लावइहिं ओरालिउ णहि निजावइहिं ।
नउ जाणहं कहिंमि किंपि चलिउ वहणहं गइमग्गु पडिक्खलिउ ॥११॥ तो पोयहिं विवरीउ वहंतिहिं उवलक्खिउ बहुबुद्धिमहंतिहिं । एह पइव्वय माइ महासइ मणि संखोहु किंपि आवेसइ । जइ आयहो नउ संति समारिय तो सयल वि जलि वोइवि मारिय । एम्व भणेवि कजि असमत्थ सयलवि थिय ओणावियमत्थ । परमेसरि सुहझाणु समारहि मं सयल वि जलि वोइवि मारहि । तं निमुणेविणु भणइं पइव्वय तं नवि धम्म जित्थु मुच्चइ दय। तुम्हहं सयलहं एउ जि ओसहु करहु अ संति संति उग्घोसहु।
अहो जइ केण वि किउ महु पचउ तो उवसमउ एउ फलु सचउ । घत्ता । तो जाय संति पचउ मिलिउ बंधुअत्तहो तण गव्वु गलिउ।
लग्गई वेलाउलि पओहणइं उत्तरियई तीरि महावणई ॥१२॥ तो कयविक्कयदायसइत्तई अहिमुह मिलिय सयलनाइत्तई । नायर निरवसेस संपाइय कुसलाकुसलु परोप्परु जाइय । १ A ढंखु