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अट्ठमो सन्धी। . विक्किउ इक्कु रयणु तहिं कढिवि सवियक्खणजणमणि परियड्डिवि । जं तहो मुल्लि महाधणु पाविउ तेण पउरि जणि सिरु विहुणाविउ । तुंगगइंद तुरय संचारिय अहिणवरायलच्छि अवयारिय। लइयई थलवाहणई सुलक्खइं करहवसहमहिसय सयसंखई। पहि पओहणइं जाण जंपाणइं दूसावासई सियकल्लाणई । वन्नविचित्तचित्तपरिवत्थई दिन्नई उजलाई नेवत्थई । गुज्झावरणसीलसुनिउत्तई पेसिय वणि विहूइ वणिउत्तई। कयपेसणउं पसाहियतिलयउ धरियउ पिंडवासु वरविलयउ ।
आवासिय अंतरि तरुजालहो थिउ खंधारु नाई भूवालहो । घत्ता । तं पिक्खिवि सा भवयत्तसुय अहिणवमुणालसोमालभुअ ।
परिचिंतह उत्तमसत्तमइ इयकालहो एउ न संभवइ ॥१३॥ परिहवसल्लु केम विसहिज्जइ जइ दुजणहं मज्झि निवसिज्जइ । पियमि सलिलु जं भुंजमि भोयणु ज लोयणहं करमि अवलोयणु । तं अविणउ संभवइ निरुत्तउ विणु नाहिं महु एउ न जुत्तउ। लइ परिहरमि जाम पडिवजह सिविणई सासणदेवय तज्जइ। विसहि पुत्ति मं काउ किलेसहि पुणरवि चिंतियसुहई लहेसहि । भंतिए ताई देहु अप्पायउ ओसहमित्तु असणु आसाइउ । जंपइ किंपि नाहि सवियारिं सहुं सवियड्ढजुवइपरिवारिं। समुहं सएसहो दिन्नु पयाणउं वहइ समूहु समुन्नयमाणउं ।
समविसमई लंघंति महाइय जउणानइहिं तीर संपाइय । घत्ता । जलि तरणि तरंड परिट्ठविय गयउरि वद्धावा पट्टविय । नंदणविओइमोहियमइहिं परिओसु जाउ मणि धणवइहिं ॥१४॥
. सप्तमः सन्धिः पणवेवि मोहमयनिम्महणु चंदप्पहु चंदुज्जलवयणु । निसुणहुं पवंचुअविसुद्धमणु गयउरि बंधुयत्तसमागमणु । सुयविओयउब्बाहुलिहूअहिं वामउ लोयणु फुरइ सरूअहिं। कुरुलिउ वायसेण घरपंगणि भणई सावि आहल्लिय नियमणि । कुरुलहिं काई अलिउ असुहावउ बंधुअत्तु परदेसहो आवउ । १ B इत्थियई २ C adds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मस्थकाममोक्खाए वुइधणवालकयाए पंचमीफलवण्णणाए भविसयत्तुपवंचणो, बंधुयत्तजउणाणयसमागमो णाम सत्तमो सन्धी परिच्छेओ सम्मत्तो।