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और जो आकाश बाहर दिखाई पड़ता है यही थोड़े ही पूरा आकाश है! असली आकाश भीतर है। भीतर चलो। भीतर के इस शून्य से थोड़ा संबंध बनाओ। जिस व्यक्ति ने भीतर के शून्य के साथ भांवर डाल ली, उसके जीवन में प्रेम खिलता । खूब खिलता । न केवल उसे मिलता, उसके आसपास जो आकर बैठ जायें वे भी अनायास धन्यभागी हो जाते उन पर भी आशीष की वर्षा हो जाती है।
तीसरा प्रश्न :
तंत्र को आपने कहा, आकाश
से आकाश में उड़ान । क्या यही तंत्र का मूल
स्वर है? इसमें जीवन का परम स्वीकार किस
भांति समाहित है ? कृपा करके समझायें।
मैंने कहा, अक्षर से क्षर की यात्रा यंत्र क्षर से अक्षर की यात्रा मंत्र अक्षर से अक्षर की यात्रा
तंत्र देह है यंत्र। दो देहों के बीच जो संबंध होता है वह है यांत्रिक सेक्स यांत्रिक है। कामवासना यांत्रिक है। दो मशीनों के बीच घटना घट रही है।
मन है मंत्र | मंत्र शब्द मन से ही बना है। जो मन का है वही मंत्र। जिससे मन में उतरा जाता है वही मंत्र। जो मन का मौलिक सूत्र है वही मंत्र । मन और मंत्र की मूल धातु एक ही है।
तो देह है यंत्र। देह से देह की यात्रा यांत्रिक - कामवासना, सेक्स।
मन है मंत्र | मन • मन की यात्रा मांत्रिक | जिसको तुम साधारणतः प्रेम कहते हो - दो मनों के बीच मिल जाना। दो मनों का मिलन | दो मनों के बीच एक संगीत की थिरकन। दो मनों के बीच एक नृत्य । देह से ऊपर है। देह है भौतिक, मंत्र है मानसिक, मनोवैज्ञानिक, सायकॉलॉजिकल ।
और आत्मा है तंत्र। दो आकाशों का मिलन | अक्षर से अक्षर की यात्रा । जब दो आत्मायें मिलती हैं तो तंत्र- न देह, न मन। तंत्र ऊंचे से ऊंची घटना है। तंत्र परम घटना है।
तो इससे ऐसा समझो
देह - यंत्र, सेक्यूअल, शारीरिक ।
मन-मंत्र, सायकॉलॉजिकल, मानसिक। आत्मा-तंत्र, कॉस्मिक, आध्यात्मिक ।
ये तीन तल हैं तुम्हारे जीवन के यंत्र का तल, मंत्र का तल, तंत्र का तल। इन तीनों को ठीक से पहचानो। और तुम्हारे हर काम तीन में बंटे हैं।
कोई व्यक्ति भोजन करता यंत्रवत । न उसे स्वाद का पता है, न वह भोजन करते वक्त भोजन