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वर्षा नहीं है। यह तुम्हारे भीतर की घटना है-अंतरतम की। प्रेम तुम्हारे अंतर्गृह का देवता है। इसे तुम कहां खोज रहे हो?
अब यह सोचो, जिनके पास भीतर प्रेम नहीं है वे दूसरों के पास प्रेम खोज रहे हैं। और जो तुम्हारे प्रेम में पड़ता है वह भी इसलिए प्रेम में पड़ा है कि शायद तुम्हारे पास प्रेम मिल जाये। देखते इस बात का मजा?
तुम एक स्त्री के प्रेम में पड़ गये, स्त्री तुम्हारे प्रेम में पड़ गई। न तुम्हारे पास प्रेम है, न उसके पास प्रेम है। होता ही तो तुम भटकते क्यों? मांगते क्यों त्र: दो भिखमंगे एक दूसरे के सामने भिक्षापात्र लेकर खड़े हैं कि कुछ मिल जाये। दोनों इस आशा में हैं कि दूसरे पर होगा। दोनों में नहीं है। थोड़ी देर में भिक्षापात्र खड़खड़ाने लगते हैं, झगड़ा शुरू हो जाता है। जल्दी ही झगड़ा शुरू हो जाता है! प्रेमी जल्दी ही लड़ने लगते हैं। क्योंकि कितनी देर धोखा खाओगे? जल्दी ही लगने लगता है कि अरे, तो दूसरा धोखा दे रहा है! कुछ मिल नहीं रहा। और दूसरे को भी लगता है, तुम भी कुछ दे नहीं रहे। तो यह व्यर्थ गई बात। यह मिलन फिर बेकार गया। फिर कहीं और खोजें, कोई और द्वार खटखटाये। ऐसे ही चलता।
नहीं, इस तरह प्रेम नहीं मिलेगा। प्रेम को जगाना हो, प्रेम की ज्योति को आविर्भूत करना हो तो भीतर जाना पड़े। प्रेम है तुम्हारे अंतरतम की पहचान। जब तुमने अपने जीवन का मूलस्रोत पा लिया, झरना पा लिया तो वहां से जो धार बहती है, वही प्रेम है।
फिर तुम जहां भी बैठोगे वहीं तुम प्रेम को पाओगे तुम्हारा प्रेम तुम्हारे साथ है। हर आदमी अपना स्वर्ग और अपना नर्क अपने भीतर लेकर चलता है। तुम लिये तो नर्क हो और स्वर्ग की तलाश कर रहे हो, यहीं भूल हो रही है। लिये तो दुख के बीज हो और सुख की तलाश कर रहे हो, यहीं भूल हो रही है। तुम फसल दुख की कांटोगे क्योंकि बीज जो हैं वही तो उगेंगे। कितना ही तुम मांगो सुख कांटोगे फसल दुख की। प्रेम के नाम पर तुम घृणा को ही पाओगे, क्रोध को ही पाओगे। और- और नई-नई पीड़ाएं, नये-नये घाव बना लोगे। और नासूर पैदा होंगे।
नहीं, यह कोई उपाय नहीं है। प्रेम के नाम पर मवाद ही पैदा होगी, कुछ भी और पैदा न होगा। इसलिए तुमसे कहता हूं. तुम कहते हो
'हर कोई ढूंढता है एक मुट्ठी आसमान हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान जो सीने से लगा ले हो ऐसा एक जहान हर कोई ढूंढता है एक मुट्ठी आसमान'
मुट्ठी आसमान? तुम्हारे भीतर पूरा आसमान मौजूद है पूरा आकाश। मुट्ठियों की बातें छोड़ो। ये दीन-दरिद्रों की बातें छोड़ो। मुट्ठियों से कहीं आकाश नापे गये? मुट्ठियों से कहीं आकाश मांगे गये? मुट्ठी जोर से बांध ली तो आकाश बाहर निकल जाता है। मुट्ठी खुली हो तो आकाश पूरा हाथ में है मुट्ठी बाधी कि गया।