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अपने कमरे में रहता। बाहर जाता भी नहीं। कमरे के बाहर नहीं जाता। ऐसे कहीं संचालन होता है? ऐसे कहीं निर्माण होता है? पूरे आश्रम से भी मैं परिचित नहीं हूं। कहां क्या हो रहा है इसका भी मुझे पता नहीं है। आश्रम के सब मकान भी मैंने नहीं देखे हैं।
ऐसे कहीं निर्माण होता है? नहीं, मैं निर्माता नहीं हूं,न जन्मदाता हूं और न संचालक हां मैं हूं ही नहीं। ज्यादा से ज्यादा बहाना। और इसे स्मरण रखना कि यह मेरा आश्रम नहीं है। और ऐसा मैं चाहता हूं कि यह आश्रम किसी का भी न हो। यह परमात्मा का ही हो, वही चलाये। मेरा उपयोग कर ले तुम्हारा उपयोग कर ले, लेकिन हम निमित्त से ज्यादा न हों।
और जब वही चला रहा हो तो हम बीच-बीच में न आयें। बीच में हमारे आने की कोई जरूरत भी नहीं। इसलिए अपने कमरे में बैठा रहता हूं। उससे कहता हूं तू चला जिनके सिर पर सवार होना हो उनके सिर पर सवार हो जा और चला।
मैं कोई कर्ता नहीं हूं। और इसीलिए बिना किसी कामना को बीच में लाये काम होता रहता। यह और भी विशाल होगा। यह और भी विराट होगा। क्योंकि विशाल के हाथ इसके पीछे हैं। हमारे हाथ तो बड़े छोटे हैं। इन हाथों से छोटी चीजें ही बनती हैं, बडी चीजें नहीं बन सकतीं। लेकिन जब परमात्मा का हाथ कहीं होता है तब बात बदल जाती है। तब चीजें विराट होने लगती हैं। तब चीजें सब सीमाओं को तोड़कर बढ़ने लगती हैं।
मैं तो अपने कमरे में बैठा हूं,सारी दुनिया से लोग चले आ रहे हैं। कैसे नाम सुन लेते हैं, कैसे उन तक खबर पहुंचती है वे जानें। जरूर कोई उनके कान में कह जाता होगा। जरूर कोई उन्हें यहां भेजे दे रहा है।
मोहम्मद के जीवन में एक बड़ा प्यारा उल्लेख है। दुश्मन उनका पीछा कर रहे थे। हजारों की भीड़ उनके पीछे लगी थी। और वे अपने केवल एकमात्र साथी अबू बकर को लेकर मक्का से रवाना हुए और दुश्मन पीछे हैं। और ऐसी घड़ी आ गई कि दुश्मन कभी भी आकर उनको खत्म कर देंगे। तो वे एक गुफा में छिप रहे। गुफा के चारों तरफ हजारों लोग चक्कर काट रहे हैं और पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, वह कहा छिपे हैं। गुफा के सामने भी लोग खड़े हैं।
और अबू बकर कंप रहा है। और वह मोहम्मद का हाथ हिलाकर कहता है कि अब क्या होगा हजरत? हम दो हैं और दुश्मन हजार हैं। आज मौत निश्चित है। और मोहम्मद हंसते हैं। और मोहम्मद कहते हैं, तू गिनती ठीक से कर। हम दो नहीं हैं, तीन हैं। तो अबू बकर अपनी चारों तरफ देखता है, वह कहता है, क्या कह रहे हैं? आपका दिमाग तो खराब नहीं हो गया घबडाहट में? तीन नहीं, दो हैं। मैं हूं और आप हैं। मोहम्मद कहते हैं, फिर तूने गलती की। हम दो का तो कुछ होना न होना बराबर है। तीसरे को देख, परमात्मा साथ है। हम तीन हैं।
और मोहम्मद ठीक कह रहे हैं। वे हजारों दुश्मन चारों तरफ घूमते रहे। वे द्वार के सामने भी खड़े रहे गुफा के और उनको मोहम्मद दिखाई न पड़े। और वे धीरे- धीरे घंटों भर मेहनत करके चले भी गये। वह जो तीसरा है वही महत्वपूर्ण है।