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कारण शास्त्र में नहीं है, उसका कारण मनुष्य के भय में है। आदमी बहुत डरा हुआ है अंधकार से अंधकार में घबड़ाहट होती है। प्रकाश हो जाता है तो थोड़ा भरोसा आता है। कुछ दिखाई तो पड़ता है। अंधकार में तो उसी को घबड़ाहट नहीं होती जिसको अपने भीतर दिखाई पड़ता है। जिसको सिर्फ बाहर ही देखने का पता है और जिसके भीतर तो कुछ भी प्रकाश नहीं है वह अंधकार में बहुत घबड़ा जाता है। क्योंकि अंधकार हुआ तो अंधे हुए अब कुछ दिखाई नहीं पड़ता। सारा संसार खो गया, जो दिखाई पड़ता था। दृश्य खो गया। अंधकार में दृश्य खो जाता है। अंधकार में तो सिद्ध ही राजी हो सकता है। क्योंकि अंधकार हो कि प्रकाश हो, दृश्य में सिद्ध को कोई रुचि नहीं है। वह तो द्रष्टा में लीन है। वह तो देखनेवाले में है।
तुमने कभी ख्याल किया, कितना ही गहन अंधकार हो, तुम तो होते हो न! तुम तो नहीं खो जाते! सूफियों की एक पुरानी कहानी है। एक गुरु के पास दो युवक आये और उन्होंने दीक्षित होने की प्रार्थना की। गुरु ने कहा, इसके पहले कि तुम्हें दीक्षित करूं, एक परीक्षा। यह लो-एक कबूतर तू ले, एक कबूतर तू ले और दोनों जाओ और ऐसी जगह मारकर कबूतर को आ जाओ, जहां कोई देखनेवाला न हो।
एक युवक तो भागा, जल्दी बाहर गया, बगल की गली में पहुंचा वहां कोई भी नहीं था। उसने जल्दी से गरदन मरोड़ दी, लौटकर आ गया। उसने कहा, लो गुरुदेव। दीक्षा दो। गुरु ने कहा कि रुका दसरा युवक कोई तीन महीने तक न लौटा। और पहला युवक बड़ा परेशान होने लगा कि हद हो गई। अभी तक इसको ऐसी जगह न मिली जहां यह मार लेता, जहां कोई देखनेवाला न हो! और बगल की गली काफी है। मैं उसमें मारकर आया हूं। गुरु कहता, तू चुप रहा तू बैठ! और जब तक दूसरा न लौट आयेगा तब तक मैं तुझे कुछ उत्तर न दूंगा। उसको आने दे।
अब तो दूसरा आता ही नहीं। पहला घबड़ाने लगा। उसने कहा, मुझे तो दीक्षा दे दें।
तीन महीने बाद दूसरा युवक लौटा कबूतर को साथ लेकर हाल बेहाल था। शरीर सूख गया था लेकिन आंखों में एक अपूर्व ज्योति थी। गुरु के चरणों में सिर रखकर उसने कबूतर लौ कि यह हो नहीं सकता। आपने भी कहां की उलझन दे दी! तीन महीने परेशान हो गया। सब जगह खोजा। ऐसी कोई जगह न मिली जहां कोई देखने वाला न हो।
फिर मैं एक अंधेरे तलघरे में चला गया। वहां कोई भी न था। ताला लगा दिया। रोशनी की एक किरण न पहुंचती थी, देखने का कोई सवाल ही नहीं था। लेकिन यह कबूतर देख रहा था। इसकी टुकुर-टुकुर आंखें, इसके हृदय की धड़कन! मैंने कहा, यह तो मौजूद है। तो फिर मैंने इसे ऐसा बंद किया डब्बों में कि इसकी धड़कन न सुनाई पड़े, न इसकी आंख दिखाई पड़े। फिर इसे लेकर मैं गया, लेकिन तब भी हार हो गई क्योंकि मैं मौजूद था। आपने कहा था, कोई भी मौजूद न हो। यह भी क्या शर्त लगा दी? मेरी मौजूदगी तो रहेगी ही, अब मैं इसको कहीं भी ले जाऊं। मैं हार गया। अब मैं ले आया। आप चाहे दीक्षा दें, चाहे न दें! लेकिन इस परीक्षा में ही मुझे बहुत कुछ मिल गया है। एक बात मेरी समझ में आ गई कि एकमात्र ऐसी मौजूदगी है जो कभी भी नहीं खोयेगी, वह मेरी है। मुझे