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एक आदमी अकड़ता है, मेरे पास लाखों हैं; और एक आदमी अकड़ता है, मैंने लाखों को लात मार दी। दोनों की अकड़ बराबर है। जरा भी भेद नहीं है। और दूसरे की शायद पहले से ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि पहले की अकड़ तो सीधी-सादी है, दूसरे की बड़ी जटिल है। पहले की अकडू तो सांसारिक है, दूसरे की आध्यात्मिक का रंग लिये हुए है। यह और जहरीली है!
इसे खयाल में ले लेना प्रयत्न से नहीं, जो भी हो, बोध से हो तो शुभ; प्रयत्न से हो तो अशुभ।'सर्वदा निर्भय और निर्विकार ज्ञानी को कहां अंधकार है, कहां प्रकाश है, और कहां त्याग है? कुछ भी नहीं है!'
क्य तम: क्य प्रकाशो वा हार्न क्य च न किंचन। निर्विकारस्य धीरस्य निराकस्य सर्वदा।।
सदा तुमने सुना है कि परमात्मा प्रकाश है। कभी-कभी कुछ थोड़े -से रहस्यवादियों ने ऐसा भी कहा है, परमात्मा अंधकार है, पर बहुत थोडे। अष्टावक्र कहते हैं, वह परम सत्य न तो प्रकाश जैसा है न अंधकार जैसा है। वहां कहां अंधकार, कहां प्रकाश! वंद्व वहां नहीं है। तो जहां दो नहीं हैं वहां सब दो गिर गये। तुमने जितने भी अब तक जाने थे जोड़े, वे सब गिर गये-जीवन-मृत्यु, अंधकार- प्रकाश, लाभ-हानि, सफलता-असफलता, सुख-दुख, अपना-पराया। सब गिर गये। वहां दो के सब जोड़े गिर गये। वहां तो दोनों मिल गये एक में।
अब जरा सोचो, अगर प्रकाश और अंधकार मिल जायें तो क्या होगा? कहने का कोई उपाय नहीं है, क्या होगा। एक बात तय है कि वह तो न प्रकाश जैसा होगा, न अंधकार जैसा होगा। कुछ होगा बिलकुल अनूठा, अपूर्व, रहस्यमय, अनिर्वचनीय; जिसको कहा न जा सके।
हम तो जो भी कहेंगे वह दो में बंट जायेगा। किसी को कहा सुंदर, तत्थण कुरूपता भीतर आ गई। किसी को कहा ऐसा, तो उससे विपरीत समाविष्ट हो गया। हम तो विपरीत से बच ही नहीं सकते। बोले कि विपरीत से फंसे। भाषा तो विपरीत में उलझी है। भाषा तो वंद्व की है। इसलिए तो मौन का इतना. इतना बहुमूल्य आदर किया गया है।
मौन का अर्थ है, भाषा के बाहर होना। ऐसी जगह पहुंचना भीतर जहां शब्द न हों। जहां शब्द नहीं वहीं ब्रह्म है। जहां शब्द खो गया वहीं ब्रह्म है। वहां एक बचा। वहां कहने का कोई उपाय नहीं। कोई कोटि नहीं बनती, कोई गणित नहीं बैठता।
'सर्वदा निर्भय और निर्विकार ज्ञानी को कहां अंधकार है, कहां प्रकाश है, कहां त्याग है? कुछ भी नहीं है।'
न किंचन! क्योंकि जो कुछ भी हम कहेंगे उसमें वंद्व और वैत आ जायेगा। ज्ञानी को कुछ भी नहीं
न किंचन और यह भी हम समझें कि सौ में निन्यानबे शास्त्रों ने परमात्मा को प्रकाश कहा है। उसका