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चलने से हाथ-पैर तो नहीं टूटते?
ऐसा अनुभव में आने लगे तो समझना कि इस आदमी के पास आंखें होंगी, यह तुम्हारा अनुमान ही होगा। लेकिन यह अनुमान धीरे-धीरे तुम्हारे अनुभव से प्रमाणित होता जायेगा। और ऐसे साथ-साथ चलकर एक दिन तुम्हारी अपनी आंख भी खुल जायेगी। ___ और शिष्य का अर्थ यही होता है कि जिसने अपना हृदय किसी को दे दिया। जिसने हृदय दे दिया है वह तो मजे से सुन लेगा। अगर तुम कृष्णमूर्ति को सुनने जाओ और वे मेरी आलोचना करते मिलें
और तुम नाराज हो जाओ तो तुमने मुझे अभी ठीक से चुना नहीं। क्योंकि तुम्हारी नाराजगी सिर्फ इतना ही बताती है कि अभी भी तुम डांवांडोल हो जाते हो। अगर तुम कृष्णमूर्ति को चुन लिए हो और मेरे पास आओ. मैं उनकी आलोचना करूं और तम क्रोधित हो जाओ तो तुम्हारा क्रोध इतना ही बताता है कि तमने हृदयपर्वक कष्णमर्ति को नहीं चना। तम्हें अभी डर है कि अगर मेरी बातों को तमने सना तो शायद तुम अपना पंथ बदल लो। उसी डर को बचाने के लिए तुम क्रोधित हो जाते हो। अगर तुमने ठीक से चुन लिया है, तुम शांति से और आनंद से मेरी बात सुन लोगे। तुम मेरी बात में से भी कुछ खोज लोगे जिससे तुम्हारे हृदय की बात ही परिपुष्ट होगी।
दिल उसको पहले ही नाजो-अदा से दे बैठे
हमें दिमाग कहां हुस्न के तकाजे का? पूछने का समय कहां मिलता है, सुविधा कहां है कि तुम सुंदर हो या नहीं।
दिल उसको पहले ही नाजो-अदा से दे बैठे । पहले ही देखने में, पहले ही दर्शन में बात हो गई। गंवा बैठे अपने को। अब चुनाव का कोई उपाय न रहा। __ और इसलिए मैं कहता हूं, यह अच्छा ही है कि सदगुरु एक-दूसरे की आलोचना करते हैं। इससे जो कच्चे घड़े हैं वे फूट जाते हैं और उनसे झंझट छूट जाती है। अगर समझो कि कृष्णमूर्ति का कोई कच्चा घड़ां यहां आ जाये तो कृष्णमूर्ति की झंझट छूटी। मेरा कोई कच्चा घड़ा वहां पहुंच जाये, मेरी झंझट छूटी। तो पके घड़े ही बचते हैं, कच्चे यहां-वहां चले जाते हैं। अच्छा ही है। जितने जल्दी चले जायें उतना अच्छा है। सदगुरु का अर्थ क्या होता है?
- तुम्हें पहले पहल देखा तो दिल कुछ इस तरह धड़का
कोई भूली हुई सूरत मुझे याद आ गई जैसे सदगुरु का अर्थ होता है, जिसके पास, जिसको देखकर तुम्हें अपनी भूली स्मृति आ गई। जिसकी आंखों में तुम्हें अपनी आंखें दिखाई पड़ गईं। जिसकी वाणी में तुम्हें अपने भीतर का दूर का संगीत सुनाई पड़ गया। जिसकी मौजूदगी में तुम्हें जैसा होना चाहिए इसकी तुम्हें याद आ गई। तुम जो हो सकते हो, तुम्हारी जो संभावना है वह बीज फूटा और अंकुरित होने लगा।
तुम्हें पहले पहल देखा तो दिल कुछ इस तरह धड़का
कोई भूली हुई सूरत मुझे याद आ गई जैसे यह कोई दिमाग और बुद्धि का निर्णय नहीं है सदगुरु, यह तो हृदय की बात है। यह तो प्रेम में पड़ जाना है। यह तो एक तरह का मतवालापन है।
सदगुरुओं के अनूठे ढंग
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