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किया है। उस प्रचार के कारण जितना अहित हुआ है, किसी और बात से नहीं हुआ।
जैसे महात्मा गांधी हैं; कुरान भी ठीक है और पुराण भी ठीक है, और महावीर भी ठीक हैं और कृष्ण भी ठीक हैं। सबको ठीक कहे चले जाते हैं। न कृष्ण से मतलब है, न मोहम्मद से मतलब है, न महावीर से मतलब है। मतलब है मोहम्मद को मानने वाले से, कृष्ण को मानने वाले से, महावीर को मानने वाले से। सब पीछे चलें, इसकी आकांक्षा है। अगर कृष्ण की आलोचना करेंगे, हिंदू नाराज हो जाता है। अगर मोहम्मद की आलोचना करेंगे, मुसलमान नाराज हो जाता है । अगर महावीर की आलोचना करेंगे तो जैन नाराज हो जाता है। इन सबको राजी रखना है। इन सबको पीछे चलाये रखना है। ये सब किसी तरह से अनुयायी बने रहें । इनके सब गुरुओं की प्रशंसा करनी है। फिर चाहें इनके गुरुओं ने जो कहा है, वह एक-दूसरे से मेल खाता हो, न खाता हो।
अब कृष्ण की गीता में और महावीर के वक्तव्यों में क्या मेल हो सकता है? मैं यह नहीं कह रहा कि कृष्ण के परम अनुभव में और महावीर के अनुभव में मेल नहीं होगा । है मेल, लेकिन कृष्ण ने अभिव्यक्ति दी और महावीर ने जो अभिव्यक्ति दी, उनमें कोई मेल नहीं है; जरा भी मेल नहीं है। उनसे विपरीत अभिव्यक्तियां नहीं हो सकतीं ।
महावीर कहते हैं, किसी की शरण मत जाना। उन्होंने सत्य को बिना किसी की शरण जाकर पाया। तो जो पाया वही कहेंगे न ! वही कहनी भी चाहिए निष्ठावान व्यक्ति को । जिस मार्ग से चले, जो परिचित है, जो अनुभव में आया उसके अतिरिक्त कोई बात नहीं कहनी चाहिए, अन्यथा सुननेवाला भटकेगा । और कृष्ण कहते हैं, 'सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।' तू सब छोड़ और मेरी शरण आ । कृष्ण ने वैसे ही जाना। कृष्ण ने शरणागत होकर जाना, समर्पण से जाना ।
तो कृष्ण ने जैसे जाना वैसे ही कहेंगे न ! महावीर ने जैसा जाना वैसा ही कहेंगे न ! फिर अगर कोई महावीर के पास जाकर कहे कि कृष्ण कहते हैं, शरणागति और आप कहते हैं, अशरण भाव; हम' क्या चुनें? तो निष्ठावान महावीर कहेंगे, कृष्ण गलत कहते होंगे। यह कहना तुम्हारे प्रति करुणा के कारण है। क्योंकि अगर महावीर कहें कि कृष्ण भी ठीक, मैं भी ठीक, तो तुम वैसे ही उलझे हो, तुम और भी उलझ जाओगे। तुम्हारी उलझन सुलझेगी न, गुत्थी और बिगड़ जायेगी। तब तुम बिलकुल किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े रह जाओगे कि अब मैं क्या करूं?
तुम पर दया करके महावीर कहते हैं, कृष्ण गलत। जो मैं कहता हूं उसे समझने की कोशिश करो। किसी की भी शरण मत जाओ तो आत्मशरण घटेगी। किसी की भी शरण गए तो तुम आत्मा से चूक जाओगे, वंचित रह जाओगे । और स्वयं को जान लेना, स्वयं हो जाना पहली शर्त है सत्य को जानने की। जो स्वयं ही न रहा वह सत्य को कैसे जानेगा ?
तुम कृष्ण के पास जाओ और कहो कि महावीर कहते हैं, अशरण; किसी की शरण मत जाना। समर्पण भूलकर मत करना। अपने पैर पर खड़े होना । किसी के कंधे पर झुकना मत, क्योंकि सब झुकना गुलामी है । और किसी पर निर्भर अगर हो गये तो बंधन निर्मित होगा। परम स्वतंत्रता, मोक्ष उपलब्ध कैसे होगा ? तो कृष्ण कहेंगे, गलत कहते होंगे। निश्चित गलत कहते हैं, क्योंकि मैंने झुककर | मैं झुका और भर गया। और जब तक मैं अकड़ा खड़ा रहा तब तक खाली रहा । मैं तुम्हें अपने अनुभव से कहता हूं कि महावीर गलत कहते होंगे। यह भी कृष्ण तुम्हारे प्रति करुणा से कहते हैं।
पाया।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5