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________________ जाती। न तो आते वक्त पता चलता कि कहां से आती, न जाते वक्त पता चलता कि कहां जाती। ___बायजीद ने कहा कि उस छोटे-से बच्चे ने मुझे बोध दे दिया कि मुझे अभी कुछ भी पता नहीं। इस छोटे बच्चे को भी सिखाने की मेरी कोई योग्यता नहीं। हार गया इससे। उस दिन से सिखाना बंद कर दिया। अब तो जान लूंगा तभी सिखाऊंगा। वह छोटा बच्चा मेरा गुरु हो गया। __जिनमें इतना साहस है कि सारे अस्तित्व को गुरु बना लें, उनके लिए फिर एक गुरु बनाने की जरूरत नहीं। लेकिन तुममें तो इतना भी साहस नहीं है कि तुम एक को गुरु बना सको, सबको तो तुम कैसे गुरु बना सकोगे? __ और धोखा मत देना अपने को। क्योंकि धोखा बड़ा आसान है और मन बड़ा चालाक है। मन कह सकता है, हम एक को गुरु इसीलिए नहीं बनाते क्योंकि हम तो सबको गुरु मानते हैं। यह कहीं एक गुरु से बचने की तरकीब न हो, बस इतना तुम खयाल रखना। जिंदगी तुम्हारी है; गंवाओ या पाओ, तुम जिम्मेवार हो। धोखा दो या बचो, तुम्हारा काम है, किसी और का इसमें कुछ लेना-देना नहीं है। इतना ही खयाल रखना कि यह एक को गुरु न बनाने के पीछे कहीं ऐसा न हो कि बचना चाह रहे हो। बहाना अच्छा खोज लिया कि हमारे तो सब गुरु हैं। अगर हों, तो इससे शुभ कुछ भी नहीं। अगर न हों तो यह धारणा बड़ी खतरनाक हो जायेगी। साहस हो तो हर जगह से शिक्षण मिल जाता है। सीखने की कला आती हो तो हर द्वार से मंदिर मिल जाता है और हर मार्ग से मंजिल मिल जाती है। सीखना न आता हो, शिष्य होने की कला न आती हो, सीखने लायक मन मुक्त न हो, पक्षपात से घिरा हो, सिद्धांतों से दबा हो तो फिर तो तुम्हें सदगुरु मिल जाये बुद्ध और अष्टावक्र जैसा भी, तो भी तुम बच जाओगे। तो भी तुम रास्ता काटकर निकल जाओगे। कोई न कोई तरकीब तुम खोज लोगे। ___शायद इसीलिए प्रश्न मन में उठा है कि बुद्ध के कोई गुरु नहीं, महावीर के कोई गुरु नहीं, नानक के कोई गरु नहीं तो हम ही क्यों गरु बनायें? ____हां, अगर नानक और बुद्ध और महावीर जैसे गुरु बना सको, फिर कोई जरूरत नहीं। यह सारा विराट अस्तित्व-क्षुद्र से लेकर विराट तक सब तुम्हारे लिए गुरु हो जाये, सब चरण तुम्हारे लिए प्रभु के चरण हो जायें, फिर कोई अड़चन नहीं। यह न हो सके तो कम से कम एक झरोखा खोलो। कम से कम एक खिड़की खोलो। खिड़की से कोई बहुत बड़ा आकाश दिखाई नहीं पड़ेगा, छोटा-सा आकाश दिखाई पड़ेगा। लेकिन छोटा-सा आकाश स्वाद बनेगा। खिड़की खोली तो आकाश का निमंत्रण मिलेगा। आकाश का विराट फैलाव खिड़की के चौखटे में कसा हुआ दिखाई पड़ेगा। वह चौखटा खिड़की का है, आकाश का नहीं। आकाश पर कोई फ्रेम नहीं है। कोई चौखटा नहीं जड़ा है। आकाश तो बिना चौखटे के है। थोड़ी-सी झलक तो आयेगी आकाश की खिड़की से। सूरज की किरणें उतरेंगी, हवा के नये झोंके आयेंगे, फूलों की गंध आयेगी, आकाश में उड़ते पक्षियों का दर्शन होगा, शायद तुम भी अपने पिंजड़े को छोड़कर उड़ने के लिए आतुर हो जाओ। प्यास जागे। __बस, गुरु के पास इतना ही तो होना है। गुरु यानी परमात्मा में एक झरोखा। गुरु के माध्यम से तुम परमात्मा को देखने में कुशल हो जाओगे। एक बार कुशल हो गये तो सारा अस्तित्व तुम्हारा गुरु मन तो मौसम-सा चंचल 191
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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