________________
जाये। जब तुम डूबने लगो तो यह आदमी काम आये कि न आये! यह तो तुम जब तक डूबो न, तब तक पता कैसे चलेगा? हो सकता है दूसरों को भी इसने बचाया हो लेकिन तुमको बचायेगा इसकी क्या कसौटी है? दूसरे ठीक ही कहते हैं इसका क्या सबूत है? और दूसरे इसके ही नौकर-चाकर नहीं हैं इसका क्या पक्का प्रमाण है? यह तुम्हें ही फंसाने को सारा जाल फैलाया हो, तुम्हें ही डुबाने को, इसके संबंध में तुम कैसे निश्चित हो सकते हो?
भय तो रहेगा। और फिर नदी तो दिखाई पड़ती है, नदी में तैरना सिखानेवाला जो उस्ताद है, तुम उसके संबंध में प्रमाणपत्र भी इकट्ठे कर सकते हो। तुम नदी के किनारे जाकर भी देख सकते हो, औरों को सिखा रहा है, और भी सीख गये हैं। लेकिन जीवन की जो नदी है वह तो बड़ी अदृश्य है। और परमात्मा का जो सागर है वह तो दिखाई नहीं पड़ता। उस अनदेखे, अनजाने में, अपरिचित में तो कोई प्रमाण भी काम नहीं आनेवाला। वहां तो कोई अकेला-अकेला जाता है। तुम किसी जाते हुए को देख तो न पाओगे। __मेरे पास इतने लोग हैं, उनमें से जो जा रहे हैं उन्हें तुम पहचान तो न पाओगे। उनमें से जो नहीं जा रहे हैं उन्हें भी तुम न पहचान पाओगे। वह तो तुम जाओगे तभी पहचान होगी। तुम जाओगे तो ही पहली दफा तुम किसी को जाते हुए देखोगे। हां, खुद के जाने के बाद तुम दूसरों को भी पहचानने लगोगे कि कौन-कौन गये। क्योंकि जो सुवास तुम्हारे भीतर उठेगी वही सुवास तुम्हें उनमें भी दिखाई पड़ने लगेगी। जो आभा तुम्हारी आंखों में आ जायेगी, जो गुंजन तुम्हारे प्राणों में होने लगेगा, एक दफा वहां सुन लिया तो फिर किसी के भी हृदय के पास से सुनाई पड़ने लगेगा। जो हमने अपने भीतर नहीं जाना है वह हम कभी भी न जान सकेंगे।
हसन ने कहा, कुत्ते को देखकर मैं यह समझ गया कि भय को एक तरफ रखना होगा। एक बात समझ में आ गई कि अगर परमात्मा मुझे नहीं मिल रहा है तो एक ही बात है, मेरी प्यास काफी नहीं है। मेरी प्यास अधूरी है। और कुत्ता भी हिम्मत कर गया तो हसन ने कहा, मैंने कहा, उठ हसन, अब हिम्मत कर। इस कुत्ते से कुछ सीख।
किसी ने बायजीद को पूछा-एक दूसरे सूफी फकीर को–कि तुम्हारा गुरु? तो बायजीद ने कहा, एक गांव से गुजरता था। एक छोटा-सा बच्चा एक दीये को जलाकर ले जा रहा था मजार पर चढ़ाने। दिन भर से मुझे कोई मिला नहीं था जिसको मैं कुछ समझाता, जिसको मैं कुछ ज्ञान देता। ज्ञान मेरे पास भी नहीं था। ___ जिनके पास नहीं होता उनको देने की बड़ी आकांक्षा पैदा होती है। क्योंकि देने में उनको थोड़ा-सा भरोसा आता है कि है; और तो कुछ पक्का नहीं है। जब वे किसी दूसरे को सलाह देते हैं तभी बुद्धिमान होते हैं, बाकी समय तो बुद्धू होते हैं। उस सलाह को देते वक्त ही थोड़ी-सी झलक मिलती है कि हां, मैं भी कुछ जानता हूं।
तो पकड़ लिया सूफी फकीर ने उस लड़के को और फूंक मारकर उसका दीया बुझा दिया। और बायजीद ने कहा, मैंने पूछा उस लड़के को कि बेटे, बता, अभी-अभी दीया जलता था, ज्योति कहां गई अब? उस लड़के ने कहा, जलायें दीया; जलाकर देखें। वह भागा और माचिस ले आया और उसने दीया जलाया और कहा, मुझे बतायें, ज्योति अब कहां से आ गई? जहां से आती वहीं चली
190
अष्टावक्र: महागीता भाग-5