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जब उस सिंह को दिखाई पड़ गया कि मैं सिंह हूं तो अब इसे दोहराना थोड़े ही पड़ेगा कि चौबीस घंटे वह दोहरायेगा कि मैं सिंह हूं। बात हो गई । खतम हो गई बात। उदघोषणा हो गई। अब दोहराने की कोई जरूरत ही नहीं। उसका व्यवहार सिंह का होगा। वही है स्वरूपभाक्। उठेगा चलेगा सिंह की तरह, बैठेगा सिंह की तरह, सोयेगा सिंह की तरह, देखेगा सिंह की तरह। यह सब होगा अखंड भजन । श्वास लेगा सिंह की तरह। जो कुछ करेगा, सिंह की तरह करेगा। उसका व्यवहार होगा उसका
भजन ।
वास्तविक धार्मिक व्यक्ति शब्दों से नहीं होता, उसकी जीवन-धारा से । उसकी जीवन-धारा में एक सातत्य है, एक अनिर्वचनीय शांति है, आनंद की एक धारा है, प्रभु की मौजूदगी है । वह बोले तो प्रभु की बात बोलता; न बोले तो उसके मौन में भी प्रभु मौजूद होता । तुम उसे जागते भी पाओगे तो प्रभु को पाओगे। तुम उसे सोते भी पाओगे तो भी प्रभु को पाओगे ।
बुद्ध सोते हुए भी तो बुद्ध ही हैं। उनके सोने में भी बुद्धत्व होगा। आनंद बुद्ध के पास वर्षों रहा,
चालीस साल रहा। वह उनका निकट सहचर था, छाया की तरह लगा रहा। रात जिस कमरे में बुद्ध सोते, आनंद वहीं सोता उनकी चिंता में - कभी जरूरत पड़ जाये। वह बड़ा हैरान हुआ। दो-चार वर्ष निरंतर देखने के बाद कभी-कभी... बुद्ध जैसे पुरुष के पास तुम रहो तो कभी ऐसा भी मन होता है, रात जागकर बुद्ध का चेहरा देखूं । तो कभी वह जागकर बैठ जाता, रात सोये बुद्ध को देखता । वैसी अनिर्वचनीय शांति !
तुम्हें तो कोई रात अगर सोते में भी देखे तो कहां शांति ? अल्लबल्ल बकोगे, मुंह बिचकाओंगे, करवटें लोगे, हाथ-पैर पटकोगे, शोरगुल मचाओगे, कुछ न कुछ करोगे। वह दिन भर की जो बेचैनी है, वह दिन भर की जो आपाधापी है, वह एकदम थोड़े ही छोड़ देगी। वह नींद में भी साथ रहेगी। भजन चलेगा। रात में रुपये गिनोगे । निन्यानबे का चक्कर जारी रहेगा। फेर ऐसे थोड़े ही छूटता है कि तुमने बस आंख बंद कर ली और सो गये तो फेर छूट गया। फिर दुकान पर बैठोगे रात । फिर कपड़ा बेचोगे ।
मुल्ला नसरुद्दीन एक रात अपनी चादर फाड़ दिया। और जब पत्नी ने कहा कि यह क्या कर रहे हो... यह क्या कर रहे हो? तो उसने कहा, तू बीच में मत बोल । अब दुकान पर भी आना शुरू कर दिया? तब उसकी नींद खुली। वह किसी ग्राहक को कपड़ा बेच रहा था।
दुकान दिन भर चलती है, रात भी चलेगी। भेड़ अगर दिन में हो तो रात में भी भेड़ रहोगे । संसार का भजन चलेगा। सिंह अगर दिन में हो तो रात भी सिंह ही रहोगे। तब सिंहत्व का भजन चलेगा। तुम जो हो वह तुम्हारे जागने में भी प्रकट होगा और नींद में भी ।
आनंद कभी-कभी बैठ जाता और बुद्ध को सोया देखता और परम उल्लास से भर जाता। उनकी गहरी निद्रा ! और फिर भी निद्रा में ऐसा शांत भाव कि कहीं भी मूर्च्छा नहीं । बुद्ध जैसे सोते वैसे ही सोये रहते रात भर - उसी करवट । जहां हाथ रख लेते वहीं हाथ रहता । रात भर बदलते न। जहां पैर रख लेते वहीं रखा रहता। आनंद बहुत हैरान हुआ कि क्या रात में भी खयाल रखते हैं कि पैर हिलाना नहीं है, हाथ हिलाना नहीं ? दिन में खैर होश से बैठते हैं, रात... ?
आखिर उससे न रहा गया। उसने कहा, मुझे पूछना नहीं चाहिए। पहली तो बात यह, मुझे देखना
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5