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अनिच्छन्नपि धीरो हि परब्रह्मस्वरूपभाक् ।।
'और धीर पुरुष नहीं चाहता हुआ भी निश्चित ही परब्रह्मस्वरूप को भजनेवाला होता है।'
और धीर पुरुष, बोध को उपलब्ध व्यक्ति, जिसका सिंहनाद हो गया, जिसने अपने वास्तविक चेहरे को पहचान लिया, वह न चाहता हुआ भी... ।
बूढ़ा सिंह जब उस युवा सिंह को नदी के तट पर ले गया तो उस युवा सिंह के मन में सिंह होने की कोई आकांक्षा भी न थी, कोई इच्छा भी न थी । वह तो बचना चाहता था। वह कहता था, बाबा मुझे छोड़ो। मुझे क्यों पकड़े हो ? मैं भेड़ हूं। और मैं भेड़ रहना चाहता हूं। और मैं बड़े मजे में हूं। और मेरी कोई आकांक्षा इससे अन्यथा होने की नहीं है । मेरा संसार बड़े सुख से चल रहा है। आप यह क्या कर रहे हैं? मुझे कहां घसीटे ले जा रहे हो? मुझे मेरे परिवार में जाने दो।
उसकी कोई इच्छा न थी । वह कुछ होना भी न चाहता था। लेकिन जब अपने वास्तविक चेहरे को देखा झील के दर्पण में, या नदी के पानी में तो क्या करोगे ? जब दिखाई पड़ जायेगा सत्य तो कैसे बचोगे? तो उदघोषणा हो गई— 'अहं ब्रह्मास्मि ।'
अनिच्छन्नपि धीरो हि परब्रह्मस्वरूपभाक् ।
न चाहते हुए भी। जो जाग्रत, थोड़ा-सा भी जाग्रत है, जरा-सी भी किरण जागने की जिसके भीतर उतरी है वह निश्चय ही परब्रह्मस्वरूप का भजनेवाला हो जाता है।
फिर स्वरूपभाक् शब्द को समझना चाहिए। परब्रह्मस्वरूप को भजनेवाला । भजन शब्द बड़ा अनूठा है। भजन का अर्थ होता है, अविच्छिन्न जो बहे । अविच्छिन्न जो बहे, अखंड जो बहे।
तुम कभी-कभी सुनते हो; धार्मिक पगले कभी-कभी इकट्ठे हो जाते हैं, वे कहते हैं, अखंड भजन, अखंड कीर्तन। और चौबीस घंटे मोहल्ले भर को परेशान कर देते हैं, माइक इत्यादि लगा लेते हैं। न किसी को सोने देते, न खुद सोते । यह नहीं है अखंड ।
अखंड भजन किया नहीं जा सकता। क्योंकि तुम जो भी करोगे वह तो खंडित ही होगा । कोई भी क्रिया अखंड नहीं हो सकती; विश्राम तो करना ही होगा।
अभी मैं बोल रहा हूं। तो हर दो शब्दों के बीच में खाली जगह है - खंडन हो गया। तुमने कहा, 'राम-राम-राम', तो हर राम के बीच में खाली जगह खंडित हो गई। जब दो राम के बीच में खाली जगह न रह जाये तब भजन । यह तो बड़ा मुश्किल मामला है। फिर तो एक राम दूसरे राम पर चढ़ जायेंगे। यह तो मालगाड़ी के डब्बे जैसा एक्सिडेंट हो गया। यह तो तुम भूल भी न सकोगे, अगर तुम भूलना भी चाहो तो। कितने ही जोर से, कितनी ही त्वरा से बोलो 'राम राम राम राम राम' । इतने जोर से जैसा वाल्मिकी ने बोला कि राम-राम मरा-मरा हो गया। इतने जोर से बोले कि मालगाड़ी के डब्बे सब एक-दूसरे पर चढ़ गये और अस्तव्यस्त हो गया मामला; सीधा - उलटा हो गया।
लेकिन फिर भी कितने ही जोर से बोलो, दो राम के बीच में जगह खाली रहेगी। अखंड तो भजन किया हुआ हो ही नहीं सकता। इसलिए स्वरूपभाक् शब्द का अर्थ समझ लेना ।
परमात्मा का भजन तो अखंड तभी हो सकता है, जब तुम्हें यह याद आ जाये कि मैं परमात्मा हूं। बस, फिर अखंड हो गया। फिर सतत हो गया । फिर जागते - उठते-बैठते-सोते भी तुम जानते हो कि मैं परमात्मा हूं।
जानो और जागो !
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