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गये हो, जो तुम्हें मिला ही हुआ है। इस पृथ्वी पर तुम उससे ही परिचित होने आये हो, जो तुम हो। कुछ और होना नहीं है। जो तुम हो उससे ही पहचान बढ़ानी है; उसके ही आंख में आंख डालनी है; उसका ही हाथ में हाथ लेना है; उसका ही आलिंगन करना है। ___ और तब तुम पाओगे, तुम कभी अशुद्ध हुए ही नहीं। तुम शुद्ध हो। और तुम कभी बुद्ध से क्षण भर नीचे नहीं उतरे। तुम्हारे भीतर की आत्मा परम बुद्ध की स्थिति में है; परम ज्ञानी की स्थिति में है। वहां रसधार बह रही। वहां अमृत बरस रहा। वहां प्रकाश ही प्रकाश है; अंधकार वहां प्रवेश ही नहीं कर पाया। वहां अंधकार प्रवेश कर भी नहीं सकता। तुम महाचैतन्य के स्रोत हो। तुम्हारे भीतर प्रभु विराजमान है-शुद्ध, बुद्ध, प्रिय, पूर्ण, प्रपंचरहित और दुखरहित। ___'अज्ञानी पुरुष अभ्यासरूपी कर्म से मोक्ष को नहीं प्राप्त होता है। क्रियारहित ज्ञानी पुरुष केवल ज्ञान के द्वारा मुक्त हुआ स्थित रहता है।' ___मोक्ष कोई लक्ष्य नहीं है, कोई गंतव्य नहीं है। मोक्ष आगे नहीं है, तुम्हारे पीछे है। मोक्ष को हाथ फैलाकर नहीं खोजना है, मोक्ष को आंख भीतर डालकर खोज लेना है। मोक्ष तुम्हारी गहराई में पड़ा हुआ हीरा है। घूमो तट-तट, बीनो शंख-सीपी, हीरा न मिलेगा। हीरा तो लगाओगे डुबकी, जाओगे गहरे अपने में, स्व के सागर में, तो पाओगे।
'अज्ञानी पुरुष अभ्यासरूपी कर्म से मोक्ष को नहीं प्राप्त होता...।'
नाप्नोति कर्मणा मोक्षं विमूढ़ोऽभ्यासरूपिणा। . कितना ही करो अभ्यास-जपो, तपो, उपवास करो; कितना ही करो अभ्यास-छोड़ो संसार, त्याग करो, भाग जाओ हिमालय; कितना ही करो अभ्यास, मोक्ष न पाओगे। क्योंकि तुम्हारी मौलिक दृष्टि तो अभी खुली नहीं कि मोक्ष मेरा स्वभाव है। फिर कहां जाना हिमालय? जो यहां नहीं हो सकता, हिमालय पर भी नहीं होगा। और जो यहां हो सकता है, उसके लिए हिमालय जाने की क्या जरूरत है?
धन ने तुम्हें नहीं रोका है। धन क्या रोकेगा? चांदी के ठीकरे क्या रोक सकते हैं? न मकान ने तुम्हें रोका है, न दुकान ने तुम्हें रोका है, न बच्चे, न पत्नी, न पति ने तुम्हें रोका है। कोई दूसरा तुम्हें कैसे रोक सकता है? तुम रुके हो अपनी मूढ़ता से। मूढ़ता तोड़ो। और कहीं मत जाओ, और कुछ मत छोड़ो, सिर्फ मूढ़ता तोड़ो।
और जिस दिन मूढ़ता टूटेगी और तुम अपने भीतर देखोगे परमात्मा को विराजमान, परात्परब्रह्म को विराजमान, उस दिन तुम पाओगे पत्नी में भी वही विराजमान है। तुम्हारे बेटे में भी वही विराजमान है। उस दिन पत्नी पत्नी न रहेगी, यह सच है। पत्नी भी परमात्मा हो जायेगी। उस दिन बेटा, बेटा न रहेगा; वह भी परमात्मा हो जायेगा। उस दिन यह सारा जगत वही हो जाता है जो तुम हो। तुम्हारे रंग में रंग जाता है। और उस दिन जो उत्सव होता है, जो रास रचता है, उस दिन जो आनंद मंगल के गीत गाये जाते हैं, वही मोक्ष है।
मोक्ष का अर्थ है : स्वयं की पहचान। नाप्नोति कर्मणा मोक्षं विमूढ़ोऽभ्यासरूपिणा। धन्यो विज्ञानमात्रेण मुक्तस्तिष्ठत्य विक्रियः।। अष्टावक्र कहते हैं, धन्य हैं वे लोग-धन्यो विज्ञानमात्रेण–जो केवल बोध मात्र से, चैतन्य
जानो और जागो!
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