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उचित है; बीच के पड़ावों की क्या बात करनी!
राम एक सराय हैं, मंजिल नहीं। रुक जाना रात भर, अगर कृष्ण समझ में न आते हों तो राम पर रुक जाना, बिलकुल ठीक है। बाहर पड़े रहने की बजाय खुले आकाश के नीचे, धर्मशाला में ठहर जाना, लेकिन धर्मशाला मंजिल नहीं है। इसलिए तुलसी का मेरे मन में कोई बहुत मूल्य नहीं है। . स्थिति-स्थापक हैं। कबीर की बात और! कबीर क्रांति हैं! तुलसी-परंपरा। पिटा-पिटाया है। कुछ नया नहीं। कोई मौलिक नहीं। कोई क्रांति का स्वर नहीं है। क्रांति के स्वर सुनने हों तो कबीर में सुनो या नानक में सुनो या फरीद में या अष्टावक्र में सुनो। अष्टावक्र तो महास्रोत हैं क्रांति के। जगत में जितने भी आध्यात्मिक क्रांतिकारी हुए, सब की मूल सूचनायें अष्टावक्र में मिल जायेंगी। अष्टावक्र जैसे मूल स्रोत हैं, हिमालय हैं, जहां से सारी क्रांति की गंगायें निकलीं। _ 'रागवान पुरुष दुख से बचने के लिए संसार को त्यागना चाहता है, लेकिन वीतराग दुख-मुक्त हो कर संसार के बीच भी खेद को प्राप्त नहीं होता है।'
'रागवान पुरुष दुख से बचने के लिए संसार को त्यागना चाहता है!' हातुमिच्छति संसारं रागी दुःखजिहासया।
पहले तो रागी व्यक्ति दुख से बचने के लिए संसार को पकड़ता है; धन को पकड़ता है ताकि दुख से बच जाये; मित्र को पकड़ता है, दुख से बच जाये; परिवार को पकड़ता है, दुख से बच जाये। पहले तो कोशिश करता है संसार की चीजों को पकड़ कर दुख से बचने की; फिर पाता है कि यह पकड़ से तो दुख ही पैदा हो रहा है, दुख से बचना नहीं हो रहा तो फिर संसार की चीजों को त्यागने लगता है, लेकिन कामना पुरानी अब भी वही है कि दुख से बच जाऊं। पहले पकड़ता था, अब त्यागता है; लेकिन दुख से बचने की वासना वही की वही है।
' 'रागवान परुष दख से बचने के लिए संसार को त्यागना चाहता है. लेकिन वीतराग परुष दुख-मुक्त हो कर संसार के बीच में भी रहे तो भी खेद को उपलब्ध नहीं होता।'
रागी दुख से ही भागता रहता है-संसार में भागे तो, मंदिर जाये तो, दुकान जाये तो, मस्जिद जाये तो-दुख से ही भागता रहता है। वीतरागी जाग कर दुख से मुक्त हो जाता है; साक्षी बन कर दुख से मुक्त हो जाता है। दुख से भागता नहीं; दुख को देख लेता है भर आंख और दुख खो जाता
___मुल्ला नसरुद्दीन को उसके मालिक ने एक दिन कहा कि जरा बाहर जा कर देख, सूरज निकला कि नहीं? वह बाहर गया, फिर भीतर आया और कुछ करने लगा जा कर कमरे में। मालिक ने पूछा: 'क्या हुआ? सूरज निकला कि नहीं?' उसने कहाः 'मैं लालटेन जला रहा हूं। बाहर बहुत अंधेरा है, दिखाई कुछ पड़ता नहीं।' ____ अब सूरज को देखने के लिए कोई लालटेन जलानी पड़ती है! और जो सूरज लालटेन जला कर दिखाई पड़े, वह सूरज होगा?
जैसे ही व्यक्ति को दुख को देखने की क्षमता आ जाती है, दुख खो जाता है। सूरज उगा, रात गई, अंधेरा गया। साक्षी जागा, दुख गया। दुख पैदा ही इसलिए हो रहा है कि हम तादात्म्य के अंधकार में खो गये हैं। सोचते हैं-मैं शरीर, मैं मन, मैं यह, मैं वह–इस वजह से सारी तकलीफ है। जैसे
साक्षी आया, दुख गया
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